गुरुवार, 22 अगस्त 2019

जय जय शदा राम

कथा सागर,,,,,,,,,,,,, *गुरु*  *,,ही    देते है,,,,,,ज्ञान,,,,,,,,,,,* *जय* *-जय  शदा राम-*

एक सिंधी ससुर जी ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये।

आखिर दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। ससुर जी हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे। उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे गुरु  संत साई शदा राम जी के पास गये और अपनी व्यथा कह सुनायी।

संत सांई ने कहाः- 'बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वरकृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयाँ लेकर दामाद के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा कर दो।'
ससुर जी ने कहाः "महाराज ! मैंने ही उनकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगू !"

संत सांई  ने उत्तर दियाः- "परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।"

ससुर जी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः- " साँई ! मुझसे क्या भूल हुई ?"

"बेटा ! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा – यह है तुम्हारी भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा – यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी – यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है – यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगों। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है।"

ससुर जी की आँखें खुल गयीं। संत साँई को प्रणाम करके वे दामाद के घर पहुँचे। सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके दोहते ने खोला। सामने नानाजी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर-जोर से चिल्लाने लगाः "मम्मी ! पापा !! देखो कौन आये ! नानाजी आये हैं, नानाजी आये हैं....।"

माता-पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, 'कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !' बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, 'अहा ! पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिताजी घर पर आये हैं ।' प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी। ससुर जी  ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहाः- "बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो ।"

"क्षमा" शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा । दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुर जी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुर जी के चरणों में गिरने लगे। पिता-पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा माँगने लगी। क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप ! सबकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। दामाद उठे और रूपये लाकर ससुर जी के सामने रख दिये। ससुरजी कहने लगेः "बेटा ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ ।
मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है ।"

दामाद ने कहाः- "पिताजी ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये ले लें।"

ससुर जी ने दामाद से रूपये लिये और अपनी इच्छानुसार बेटी व नातियों में बाँट दिये । सब कार में बैठे, घर पहुँचे। पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी व बालकों का मिलन हुआ तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो।

सारा परिवार प्रेम के अथाह सागर में मस्त हो रहा था। क्षमा माँगने के बाद उस साधक के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशारूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये और साधना सजीव हो उठी।

जय जय शदा राम

एक खबर

संपादक

विनोद मेघवानी

        🙏🙏🙏🙏🙏

बुधवार, 21 अगस्त 2019

मोदी जी और पाकिस्तान pok कश्मीर


अमिताभ,,,,, का सिलसिला,,,, *,   मूवी का डायलॉग याद है न दोस्तों ,,,हाँ हमे तुमसे मोहब्बत है तुमसे मोहब्ब्त हो गई है,,,,आज पूरा देश भी ये कह राहा है ,,,मोदी जी हमे तुमसे मोहब्ब्त है आप से मोहब्बत हो गई है मजेदार बात ये  है कि देश का हर नागरिक उनमें से सिंधिया जैसे राजनीतिक दुश्मन भी मोदी जी से मोहब्बत करते है और पूरे देश के सामने इस मोहब्बत का इकरार करते हुऐ कहते है मोदी जी ने जम्मू कश्मीर से धारा370 अनुच्छेद 35a हटाकर  हमारा ओर देश का दिल लूट लिया है । अब पूरे देश की जनता मोदी जी के लिऐ दिल लिये बैठी है ।। ओर उधर पाकिस्तान ओर pok कश्मीर की जनता इमरान खान से परेशान है पाकिस्तान की जनता तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को महंगाई के लीये गाली दे रही है  और इमरान खान से इस्तीफा मांग रही है और pok कश्मीर की जनता अपने हक के लिए आवाज उठा रही है और कह रही की ,,,,,हमारे pok कश्मीर को पाकिस्तान से आजाद करो और,,,,हमारे pok कश्मीर का विलय ,,,भारत मे करो,,,,ओर पाकिस्तान की फ़ौज इन सब घटनाओं पे कड़ी नजर रखे हुऐ ओर हमारे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ,पाकिस्तान फ़ौज जल्द ही पूरे पाकिस्तान को अपने कब्जे में लेके ईमरान खान सत्ता से हटा देगी,,,,एक खबर,,,,,,,,,,संपादक,,,,,,,,,,,,,,विनोद मेघवानी ,,*

रविवार, 18 अगस्त 2019

साई लाल दास ने अपनी अमूर्त वाणी से बरसाई सत्संग में अमूर्त वर्षा

सन्त साई लाल दास जी ने


 अपनी अमूर्त वाणी से


 सत्संग संध्या,, में बरसाई


 अमूर्त वर्षा,,, इस सत्संग


 की अमूर्त  वर्षा में 


 भीगकर,,स्रोताओं की


 आत्मा तृप्त हो गई,,,,,ओर


 सन्त लालदास भी


 स्रोताओं की भक्ति देखकर


 भाव विभोर हो उठे,,


,उन्होने ने कहा कि जो 


आपके पास है उसी में


 संतोष करो तो सुखी रहोगे


 ।इस पे एक कथा सुनाई,,,


,,,की एक व्रद्ध दम्पति थे


 जो लगभग 75 वर्ष के


 स्टेशन पे चाय बेच के


 गुजारा करते थे ।एक दिन


 रामनाथ अपनी पत्नी से


 कहता है कि हमने क्या


 बिगाड़ा था उस भगवान


 जो हमे इस उम्र में भी


 मेहनत कर के जीवन का


 गुजारा करना पड़ राहा है


 । अगर हमें औलाद दी


 होती तो आज हम आराम


 से घर मे होते और हमारा


 बेटा हमे कमा के खिलाता


 उसकी पत्नी उसे


 समझाती कहती कि जो है


 उसमें सन्तोष करो और


 राम नाथ उसकी बात से


 सहमत नही होता था ।


 एक रोज अपनी चाय


 दुकान से वो एक ट्रेन से


 अपनी हम उम्र जोड़े को


 उतरते देखते है । सुबह से


 शाम हो जाती है वो जोड़ा


 बेंच पर ही बैठा था ।


 रामनाथ से राहा नही


 जाता वो उनसे पूछता है


 भाई साहब आपको कान्हा


 जाना है किस ट्रेन में जाना


 है में आपको चढ़ा दूंगा ।


 वो सज्जन कहते नही हमे


 कही नही जाना है हमे


 इसी स्टेशन पर हमारे छोटे


 बेटे ने उतरने के लीये


 काहा है ।हमे लेने के लिए


 हमारा बड़ा बेटा आएगा


 ।रामनाथ कहता है आप


 अपना एड्रेस पता बताओ


 में ऑटो कर देता हूँ ।


 सज्जन कहता हमारे बेटे


 ने एड्रेस दिया है पर हमें


 पड़ना नही आता आप


 खुद पड़ लो कहते हुऐ


 उनको कागज देते है


 ।कागज पड़ कर राम नाथ


 किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता


 क्यो की उस कागज में


 लिखा होता है *! की ये मेरे माँ बाप है इनको आप व्रद्ध आश्रम पुहुचा देना  तब वो राम नाथ कहता है भगवान शुक्र है तूने हमे.....औलाद नही दी  ,,, !*

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

सिन्धुसभा 1 सितम्बर को रायपुर

*एक*  *खबर* *जय झूलेलाल ,,,,,,,हमने कई सज्जनों के मुख से ये सुना है कि फलां फलां समाज मे एकता है  पर हमारे सिंधी समाज मे एकता नही है बात  सत्य तो नही पर सही है की सिंधी समाज संगठित नही है । पर उसको संगठित किया जा सकता है और किया जा राहा है भारतीय सिंधु सभा (युवा विंग) के अध्यक्ष चेतन तारवानी ओर साई उदयलाल शदाणी ने छत्तीसगढ़ सिंधी समाज को एक माला में पिरोने की शुरुवात की है इसी कड़ी में 1 सितम्बर 2019 रविवार को रायपुर में सिन्धुसभा का आयोजन किया जा राहा है । हम छत्तीसगढ़ सिंधी समाज की सभी पंचायतों ओर संस्थाओं ओर सिंधी समाज के उन सज्जनों से निवेदन करते जो किसी पद पर नही है ।पर उनके दिल मे सिंधी समाज के लिए कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश है वो जरूर आये । आप से ही समाज संगठित होगा आप अपने सब कार्य एक दिन के लिए भूल जाये और समाज को संगठित करने में सहयोग करे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद 🙏🏻,,,,,,,,,,,,,विनोद मेघवानी पंजीयन प्रभारी ,,,,,भारतीय सिंधु सभा (युवा विंग ) -*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, *सिंधु सभा को सफल बनाने के लिए शेयर करे 🙏🏻*

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

सिंधु महासभा का आयोजन रायपुर में 1 सितम्बर को

आदरणीय
मुखीगण/सिंधी संस्था अध्यक्ष

जय झूलेलाल 🙏

आपको यह जानकारी देते

हुए हर्ष हो रहा है कि,

छत्तीसगढ़ स्तर पर सिंधी

समाज की सभी पूज्य

पंचायते एवं संस्थाओ को

एक सूत्र में पिरोने एवं

समाज उत्थान को मूर्त

रूप देने के उद्देश्य से

भारतीय सिंधु सभा युवा

विंग छतीसगढ़ द्वारा पं.
दीनदयाल उपाध्याय

आडिटोरियम साइंस
कालेज परिसर जी॰ई॰

रोड रायपुर दिनांक 1
सितंबर को समय - सुबह
10 से शाम 6 बजे

*सिंधु महासभा* का

आयोजन किया जा रहा है

जिसमें प्रवेश हेतु एंट्री पास लेनी होगी ।

इस महासभा में एक पत्रिका का विमोचन

करवाया जाएगा जिसमें छत्तीसगढ़ के पूज्य सिंधी पंचायतों के वर्तमान

मुखीगण तथा महासचिव एवं विभिन्न सिंधी संस्थाओं

के अध्यक्ष एवं सचिव का फ़ोटो नाम पता एवं

मोबाइल नंबर की पूर्ण जानकारी के साथ

सिंधियत की महत्वपूर्ण जानकारिया प्रकाशित की जायेंगी ।

इस हेतु आपसे अनुरोध है

पास्पोर्ट साईज फ़ोटो पता एवं  मोबाइल नंबर *

सिर्फ़ नीचे लिखे मेल या whatApp नंबर* पर ही पोस्ट करे 🙏

sindhumahasabha@gmail.com
98271 96020 (दर्शन निहाल )
98279 55973 (राम खटवानी )
97539 95000 (विकास रूपरेला )
93006 70116।  (बंटी गावड़ा )
96175 33693 (आकाश हिंदुजा )
98271 77220 (विजय किंगरानी)

निवेदक 🙏🙏
सी॰ए॰ चेतन तारवानी
प्रदेश अध्यक्ष
एडवोकेट उदय लाल शदाणी
प्रदेश महासचिव

रविवार, 7 जुलाई 2019

मोदी जी के गुण,,,, बने,,,,,राहुल जी के अवगुण बने ,,,,????

मोदी जी  के जो गुण,,,, है
राहुल जी के अवगुण,,,,बने ???????

विनोद मेघवानी की कलम से,,,,,✍🏻,,,,,,,,

मोदी जी मे दो गुण,,, कूट कूट के भरे ,,,,एक तो निडरता,,,,,दूसरी वाकपटुता,,,,, ये दोनों गुण,,,, एक प्रभावशाली,,,,, नेता में होने जरूरी है,,,,,तभी आप दुनिया पे ,,,,ओर लोंगो के दिलों दिमाग मे राज कर सकते हो,,,,,ओर आज मोदी जी दुनिया पर ओर लोंगो के दिलो दिमाग मे इस तरह बस गये जैसे उनके शरीर का हिस्सा है,,,,,,,, ओर ये ,,दोनों गुण राहुल गांधी जी के पास नही है,,,,,इसलिये,,,,,, वो एक प्रभावशाली नेता नही बन सकते,,,,,,ओर  शायद राहुल जी ने अपनी  ,,,इन दोनों कमियों को महसूस किया इस लीये,,,,कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया,,,,,,,,,,,,,,,,,अब सवाल  ये की कांग्रेस का अध्यक्ष कौन बने,,,,

1969 में मुद्दों के जरिये कांग्रेस को मिली थी चुनावी सफलता
कम से कम दो अवसरों पर कांग्रेस नेतृत्व ने मुद्दों के जरिये पार्टी को चुनावी सफलता के शीर्ष पर पहुंचा दिया था। ये मुद्दे बाद में नकली साबित हुए, पंरतु तात्कालिक तौर पर उन्होंने अपना असर जरूर दिखाया। 1969 में कांग्रेस में हुए विभाजन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार अल्पमत में आ गई थी। वह कम्युनिस्ट पार्टियों और द्रमुक की मदद से सरकार चला रही थीं।
इंदिरा का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा
इंदिरा गांधी और उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस का भविष्य अनिश्चित हो चुका था, लेकिन इंदिरा गांधी ने साहस के साथ ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। उनकी सरकार ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर यह धारणा बनाई कि निजी बैंक गरीबी हटाने की राह में बाधक हैं, क्योंकि वे गरीबों को कर्ज नहीं देते। इसके साथ ही उन्होंने राजाओं के प्रिवीपर्स और विशेषाधिकार खत्म किए। कालांतर में ये कदम लाभकारी नहीं रहे, लेकिन तब गरीबों को यही लगा कि इंदिरा गांधी हमारे लिए काम कर रही हैं। नतीजतन 1971 के लोकसभा चुनाव और 1972 के विधानसभा चुनावों में इंदिरा कांग्रेस ने भारी सफलता हासिल की जबकि मूल कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज पुराने धड़े में ही बने हुए थे। तब मुद्दों के दम पर ही इंदिरा गांधी ने मैदान फतह किया था। आज जब मुद्दे नहीं हैं तो प्रियंका गांधी चुनावी हार के लिए कार्यकर्ताओं को फटकार रही हैं।
राजीव गांधी की छवि ‘मिस्टर क्लीन’ की थी
संजय गांधी के निधन के बाद जब राजीव गांधी को पार्टी का महासचिव बनाया गया तो उनकी छवि ‘मिस्टर क्लीन’ की थी। उनकी पहल पर ही देश के तीन विवादास्पद कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को हटाया गया। इंदिरा की हत्या से उपजी सहानुभूति के साथ-साथ राजीव गांधी की स्वच्छ छवि भी 1984 में कांग्रेस की अभूतपूर्व जीत का कारण बनी।
भ्रष्टाचार और गरीबी के लिए कांग्रेस जिम्मेदार
आज कांग्रेस के शीर्ष परिवार के साथ-साथ अनेक बड़े नेताओं की एक खास तरह की छवि बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कहा था कि भ्रष्टाचार और गरीबी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार मानते हुए लोगों ने उसे ‘बेल गाड़ी’ कहना शुरू कर दिया है। पार्टी में प्रथम परिवार के सदस्य भ्रष्टाचार के मुकदमों के कारण बेल यानी जमानत पर हैं।
कांग्रेस नेतृत्व को लोकलुभावन नारा गढ़ना तक नहीं आता
2014 की शर्मनाक चुनावी पराजय के बाद 2019 में तो कांग्रेस को 18 प्रदेशों और केंद्रशासित राज्यों में लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली। मान लिया कि कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व को इंदिरा गांधी की तरह कोई लोकलुभावन नारा गढ़ना तक नहीं आता, परंतु वह एंटनी कमेटी की सलाह मानकर अपनी बेहतरी की कोशिश कर सकती थी। भले ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार नहीं है, लेकिन राज्यों में अपनी सरकारों के जरिये वह यह साबित करने की कोशिश कर सकती थी कि उस पर भ्रष्टाचार का आरोप सही नहीं है। इसके उलट मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर कुछ ही महीनों के कार्यकाल में एक बड़े घोटाले का आरोप लग गया।
कांग्रेस के गलत व्यवहार से हुआ भाजपा को लाभ
वर्ष 2014 की हार के बाद कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए आठ सूत्रीय सुझाव के साथ शशि थरूर ने एक लेख लिखा था। उसमें एक सूत्र यह भी था कि कांग्रेस ‘भाजपा को राष्ट्रवाद पर एकाधिकार कायम न करने दे।’ मगर पुलवामा, बालाकोट, र्रोंहग्या घुसपैठ आदि मामलों में कांग्रेस का व्यवहार ऐसा रहा जिससे भाजपा को ही लाभ मिल गया।
मोदी की स्वच्छ छवि को खराब करने की कोशिश
लगता है कांग्रेस नरेंद्र मोदी सरकार के अलोकप्रिय होने के इंतजार में जुटी है। उसे यह वास्तविकता समझ नहीं आ रही कि मोदी पूर्णकालिक राजनेता हैं। उनके पास सरकार भी है। उन्हें जनहित में पहल करने और फैसले लेने की सुविधा है। मोदी की छवि व्यक्तिगत रूप से एक ईमानदार नेता की है। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि ‘मैं मोदी की छवि तहस-नहस कर दूंगा और मैंने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है।’ ऐसी ही गलतफहमियां राहुल गांधी और उनकी पार्टी के लिए लगातार नुकसानदेह साबित हुईं। उन्हें समझ नहीं आया कि जिसकी छवि स्वच्छ है उसे कोई खराब कैसे कर सकता है?
जिम्मेदार और मजबूत विपक्ष जरूरी
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जिम्मेदार और मजबूत विपक्ष जरूरी है, पर यदि कांग्रेस और उसके नेता इसी तरह गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करते रहे तो उससे खुद कांग्रेस और लोकतंत्र का कोई भला नहीं होने वाला।

एक खबर 
संपादक
स्वतंत्र लेखक
विनोद मेघवानी

मोदी जी के गुण,,,,,,, बने राहुल,,,,,,,,,जी के अवगुण,,,,,,,????????

मोदी जी  के जो गुण,,,, है
राहुल जी के अवगुण,,,,बने ???????

विनोद मेघवानी की कलम से,,,,,✍🏻,,,,,,,,

मोदी जी मे दो गुण,,, कूट कूट के भरे ,,,,एक तो निडरता,,,,,दूसरी वाकपटुता,,,,, ये दोनों गुण,,,, एक प्रभावशाली,,,,, नेता में होने जरूरी है,,,,,तभी आप दुनिया पे ,,,,ओर लोंगो के दिलों दिमाग मे राज कर सकते हो,,,,,ओर आज मोदी जी दुनिया पर ओर लोंगो के दिलो दिमाग मे इस तरह बस गये जैसे उनके शरीर का हिस्सा है,,,,,,,, ओर ये ,,दोनों गुण राहुल गांधी जी के पास नही है,,,,,इसलिये,,,,,, वो एक प्रभावशाली नेता नही बन सकते,,,,,,ओर  शायद राहुल जी ने अपनी  ,,,इन दोनों कमियों को महसूस किया इस लीये,,,,कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया,,,,,,,,,,,,,,,,,अब सवाल  ये की कांग्रेस का अध्यक्ष कौन बने,,,,

1969 में मुद्दों के जरिये कांग्रेस को मिली थी चुनावी सफलता
कम से कम दो अवसरों पर कांग्रेस नेतृत्व ने मुद्दों के जरिये पार्टी को चुनावी सफलता के शीर्ष पर पहुंचा दिया था। ये मुद्दे बाद में नकली साबित हुए, पंरतु तात्कालिक तौर पर उन्होंने अपना असर जरूर दिखाया। 1969 में कांग्रेस में हुए विभाजन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार अल्पमत में आ गई थी। वह कम्युनिस्ट पार्टियों और द्रमुक की मदद से सरकार चला रही थीं।
इंदिरा का ‘गरीबी हटाओ’ का नारा
इंदिरा गांधी और उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस का भविष्य अनिश्चित हो चुका था, लेकिन इंदिरा गांधी ने साहस के साथ ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। उनकी सरकार ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर यह धारणा बनाई कि निजी बैंक गरीबी हटाने की राह में बाधक हैं, क्योंकि वे गरीबों को कर्ज नहीं देते। इसके साथ ही उन्होंने राजाओं के प्रिवीपर्स और विशेषाधिकार खत्म किए। कालांतर में ये कदम लाभकारी नहीं रहे, लेकिन तब गरीबों को यही लगा कि इंदिरा गांधी हमारे लिए काम कर रही हैं। नतीजतन 1971 के लोकसभा चुनाव और 1972 के विधानसभा चुनावों में इंदिरा कांग्रेस ने भारी सफलता हासिल की जबकि मूल कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज पुराने धड़े में ही बने हुए थे। तब मुद्दों के दम पर ही इंदिरा गांधी ने मैदान फतह किया था। आज जब मुद्दे नहीं हैं तो प्रियंका गांधी चुनावी हार के लिए कार्यकर्ताओं को फटकार रही हैं।
राजीव गांधी की छवि ‘मिस्टर क्लीन’ की थी
संजय गांधी के निधन के बाद जब राजीव गांधी को पार्टी का महासचिव बनाया गया तो उनकी छवि ‘मिस्टर क्लीन’ की थी। उनकी पहल पर ही देश के तीन विवादास्पद कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को हटाया गया। इंदिरा की हत्या से उपजी सहानुभूति के साथ-साथ राजीव गांधी की स्वच्छ छवि भी 1984 में कांग्रेस की अभूतपूर्व जीत का कारण बनी।
भ्रष्टाचार और गरीबी के लिए कांग्रेस जिम्मेदार
आज कांग्रेस के शीर्ष परिवार के साथ-साथ अनेक बड़े नेताओं की एक खास तरह की छवि बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कहा था कि भ्रष्टाचार और गरीबी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार मानते हुए लोगों ने उसे ‘बेल गाड़ी’ कहना शुरू कर दिया है। पार्टी में प्रथम परिवार के सदस्य भ्रष्टाचार के मुकदमों के कारण बेल यानी जमानत पर हैं।
कांग्रेस नेतृत्व को लोकलुभावन नारा गढ़ना तक नहीं आता
2014 की शर्मनाक चुनावी पराजय के बाद 2019 में तो कांग्रेस को 18 प्रदेशों और केंद्रशासित राज्यों में लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली। मान लिया कि कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व को इंदिरा गांधी की तरह कोई लोकलुभावन नारा गढ़ना तक नहीं आता, परंतु वह एंटनी कमेटी की सलाह मानकर अपनी बेहतरी की कोशिश कर सकती थी। भले ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार नहीं है, लेकिन राज्यों में अपनी सरकारों के जरिये वह यह साबित करने की कोशिश कर सकती थी कि उस पर भ्रष्टाचार का आरोप सही नहीं है। इसके उलट मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर कुछ ही महीनों के कार्यकाल में एक बड़े घोटाले का आरोप लग गया।
कांग्रेस के गलत व्यवहार से हुआ भाजपा को लाभ
वर्ष 2014 की हार के बाद कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए आठ सूत्रीय सुझाव के साथ शशि थरूर ने एक लेख लिखा था। उसमें एक सूत्र यह भी था कि कांग्रेस ‘भाजपा को राष्ट्रवाद पर एकाधिकार कायम न करने दे।’ मगर पुलवामा, बालाकोट, र्रोंहग्या घुसपैठ आदि मामलों में कांग्रेस का व्यवहार ऐसा रहा जिससे भाजपा को ही लाभ मिल गया।
मोदी की स्वच्छ छवि को खराब करने की कोशिश
लगता है कांग्रेस नरेंद्र मोदी सरकार के अलोकप्रिय होने के इंतजार में जुटी है। उसे यह वास्तविकता समझ नहीं आ रही कि मोदी पूर्णकालिक राजनेता हैं। उनके पास सरकार भी है। उन्हें जनहित में पहल करने और फैसले लेने की सुविधा है। मोदी की छवि व्यक्तिगत रूप से एक ईमानदार नेता की है। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि ‘मैं मोदी की छवि तहस-नहस कर दूंगा और मैंने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है।’ ऐसी ही गलतफहमियां राहुल गांधी और उनकी पार्टी के लिए लगातार नुकसानदेह साबित हुईं। उन्हें समझ नहीं आया कि जिसकी छवि स्वच्छ है उसे कोई खराब कैसे कर सकता है?
जिम्मेदार और मजबूत विपक्ष जरूरी
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जिम्मेदार और मजबूत विपक्ष जरूरी है, पर यदि कांग्रेस और उसके नेता इसी तरह गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करते रहे तो उससे खुद कांग्रेस और लोकतंत्र का कोई भला नहीं होने वाला।

एक खबर
संपादक
स्वतंत्र लेखक
विनोद मेघवानी

शनिवार, 6 जुलाई 2019

दुर्ग महापौर की टिकट किसे मिलेगी

सूत्रों मिली जानकारी के

 अनुसार ,,,,नगर निगम

 चुनाव ,,,नजदीक आने से

 दुर्ग के महापौर,,,,, की

 टिकट की दावेदारी शुरू

 हो गई ,,,।  दुर्ग से वर्तमान

 सभापति,,, नारायणी ओर

 पूर्व महापौर,,, R N वर्मा

 को कांग्रेस से महापौर की

 टिकट मिल सकती है ।

मुख्यमंत्री माननीय भूपेश

 बघेल जी  से दुर्ग शहर  के

 विभिन्न  विकास
 योजनाओं को लेकर चर्चा

 करते हुए जिला अध्यक्ष आर.एन वर्मा  जी,

 सभापति राजकुमार नारायणी, निखिल

 खिचरिया प्रदेश सचिव युवा कांग्रेस एवं बंटी शर्मा

 मुख्यमंत्री निवास मे सौजन्य मुलाकात किए |

बुधवार, 3 जुलाई 2019

मोती लाल बोरा जी बने ,,,राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष,,,,


जल बचाने के लीये हमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना जल शक्ति से जुड़ना होगा,,,,विनोद मेघवानी

जल के बचाव के लिये हमें प्रधानमंत्री मोदी जी की योजना ,,,जल शक्ति से जुड़ना होगा

आओ मिलकर जल बचायें
जल हे तो कल है

विनोद मेघवानी

संपादक एक खबर
स्वतंत्र पत्रकार,,,,,,,,,,

वर्षोंजल संचयन और कृषि में जल ,,
जल संग्रहण जल ‘जीवन का अमृत’ है। हमें वर्तमान व भावीव पीढ़ियों के लिये जल संरक्षण की आवश्यकता है। इस पाठ के माध्यम से आप जल संरक्षण की आवश्यकता तथा जल संग्रहण की विभिन्न विधियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः
i. जल संरक्षण की आवश्यकता व महत्ता का वर्णन कर पाएँगे;
ii. जल संचयन (संग्रहण) की आवश्यकता का वर्णन कर पाएँगे;
iii. पारंपरिक जल संचयन (संग्रहण) की विभिन्न विधियों का विवरण दे पाएँगे तथा उनका वर्गीकरण कर सकेंगे;
iv. आधुनिक जल संचयन के विभिन्न तरीकों का विवरण व वर्गीकरण कर पाएँगे।
30.1 जल संरक्षण की आवश्यकता
जल, जीवन के लिये सबसे अहम प्राकृतिक संसाधन है। आगामी दशकों में यह विश्व के कई क्षेत्रों में एक गंभीर अभाव की स्थिति में चला जायेगा। यद्यपि जल पृथ्वी में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला पदार्थ है, फिर भी यह समान रूप से वितरित नहीं है। अक्षांश में परिवर्तन, वर्षा के तरीके (पैटर्न), स्थलाकृति इत्यादि इसकी उपलब्धता को प्रभावित करते हैं।
जल एक ऐसी संपदा है जिसका किसी तकनीकी प्रक्रिया के माध्यम से, जब जी चाहे, तब उत्पादन या संचयन नहीं हो सकता। मूल रूप से, पृथ्वी पर कुल मिलाकर, अलवण जल और समुद्री जल की मात्रा स्थायी रूप से तय है।
जो अलवण जल हमारे जीवन के लिये इतना जरूरी है, उसकी मात्रा पृथ्वी पर पाए जाने वाले पानी की कुल मात्रा की केवल 2.7% है। इस दो प्रतिशत का लगभग सारा भाग बर्फ की टोपियों, हिमनदियों (ग्लेशियरों) और बादलों के रूप में पाया जाता है। अलवण जल का शेष बचा हुआ थोड़ा सा भाग झीलों और भूमिगत स्रोतों में सदियों से एकत्रित है। आश्चर्य की बात तो यह है कि समुद्रों में पाया जाने वाला खारा पानी, जो कि इस पृथ्वी पर अलवण जल का परम स्रोत है। वर्षा का लगभग 85% जल प्रत्यक्ष रूप से समुद्र में गिरता है और भूमि में कभी नहीं पहुँच पाता है। वर्षा का जो शेष भाग भूमि पर गिरता है, वह झीलों और कुओं को भर देता है और नदियों के प्रवाह को बढ़ाता रहता है। समुद्री जल के प्रत्येक 50,000 ग्राम के सामने सिर्फ एक ग्राम अलवण जल मानव जाति को उपलब्ध है। इस कारण जल एक दुर्लभ और अनमोल संसाधन के रूप में सामने आता है।
भारत में स्थिति अभी भी अत्यंत खराब है। यद्यपि भारत विश्व के सबसे आर्द्र देशों में से एक है, इसमें जल का वितरण समय और स्थान के आधार पर बहुत असमान है। हमारे देश में औसतन 1150 मिमी वार्षिक वर्षा होती है, जो यह संसार में किसी भी समान आकार के देश के मुकाबले में सबसे अधिक है। परन्तु इस बड़ी मात्रा की वर्षा का वितरण असमान है। उदाहरण के लिये एक वर्ष में औसतन वर्षा के दिनों की संख्या केवल 40 है। अतः वर्ष का शेष लम्बा भाग सूखा रहता है। इसके अलावा, जहाँ उत्तर-पूर्व के कुछ क्षेत्रों में वर्षा तेरह मीटर तक होती है, वहीं राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में 20 से.मी. से अधिक वर्षा नहीं होती। वर्षा के इस असमान वितरण के कारण, देश के कई भागों में पानी का भीषण अभाव है।
बढ़ती हुई घरेलू, औद्योगिक और कृषि से संबंधित कार्यों की मांग की पूर्ति के कारण, पानी की उपलब्ध मात्रा में कमी हो रही है और यह स्थिति भविष्य में और गंभीर हो सकती है। ऊपर से, पिछले कुछ दशकों में देश में सिंचाई का विस्तार करने का प्रयास किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि हमारी जल संपदा का अत्यधिक दोहन हुआ है। हमारे बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण ने पानी की मांग को बढ़ा दिया है। उपरोक्त दिये गये इन कारणों की वजह से देश के कई भागों में जल का भारी अभाव हो गया है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि हम जल को संरक्षित रखें और उसका दुरुपयोग होने से बचायें। हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये हमें अधिक खाद्य सामग्री की आवश्यकता है। खाद्य-उत्पादन को बढ़ाने के लिये, हमें सिंचाई के लिये, और अधिक जल की आवश्यकता है। अतः पानी के संरक्षण की तत्काल जरूरत है।
प्राचीन काल में, जल को एक अनमोल संपदा के रूप में देखा और समझा जाता था। वास्तव में हर प्राचीन संस्कृति पानी को पवित्र संसाधन के रूप में देखती थी। परन्तु बीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति के उदय और उसके फलस्वरूप पश्चिमी भौतिकवाद के आगमन ने प्राकृतिक साधनों को देखने का दृष्टिकोण ही गैर पारंपरिक बना दिया है।
ठीक उसी प्रकार जैसे बीसवीं सदी तेल के चारों ओर घूमती थी, वैसी ही इक्कीसवीं सदी स्वच्छ और पेयजल के मुद्दों के ऊपर फोकस करेगी। पानी और पर्यावरणीय संरक्षण से संबंधित मुद्दों का हल ढूंढने की दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण कदम लोगों के दृष्टिकोण और आदतों में परिवर्तन लाना होगा। यदि दुनिया भर के लोग ही पानी को एक ऐसे सस्ते साधन के रूप में देखेंगे, जिसको जितना ज्यादा बर्बाद किया जा सकता हो तब उस स्थिति में, संसार की बेहतरीन नीतियाँ और तकनीकें भी पानी के अभाव को कम नहीं कर सकतीं।
भारत की बढ़ती जनसंख्या की वर्तमान दर को देखते हुए, और उपलब्ध जल संपदा की बढ़ती मांग की पूर्ति के प्रयास में भारत, आगामी पच्चीस वर्षों में सबसे अधिक प्यासे लोगों की जनसंख्या के रूप में एक नकारात्मक छवि बनाने में सफल हो जाएगा। ऐसी स्थिति को रोका नहीं जा सकता। यदि उपलब्ध संसाधनों का ध्यानपूर्वक, बुद्धिमत्ता के साथ प्रयोग नहीं होता है। शहरीकरण, तेज गति से होता औद्योगीकरण और एक लगातार बढ़ती जनसंख्या ने अधिकतर सतही जलाशयों को प्रदूषित करके, उनको मानवीय प्रयोग के लिये अनुपयुक्त बना दिया है। बढ़ती हुई जरूरतों के साथ-साथ, इनकी भूमिगत जल पर निर्भरता बढ़ गयी है। असंख्य बोर-छिद्रों द्वारा भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन, जल तालिका में गिरावट कर दी है। ऐसा अनुमान है कि सन 2050 तक भारत की आधी जनसंख्या शहरी होगी और यह पानी के गंभीर अभाव की समस्या को झेलेगी। इसके अतिरिक्त, जल के वितरण में गंभीर असमानताएँ हैं।
दुनियाभर में पानी की कमी निम्नलिखित कारणों से बढ़ रही हैः-
i. सूखे
ii. सिंचाई की बढ़ती मांग
iii. औद्योगिक मांग
iv. प्रदूषण, जल संसाधनों के प्रयोग में कमी, और
v. जल की व्यर्थ बर्बादी और गैर जिम्मेदाराना रवैया।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, हमारे देश में सूखे का मौसम का काल काफी लंबा होता है। सूखे मौसम के दौरान हमारी पानी की मांगों को झीलों, भूमिगत जल व जलाशयों में संग्रहित पानी द्वारा पूरी होती है। पानी की लगातार बढ़ती मांग के साथ-साथ, पानी के ये स्रोत अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं, अतः उन प्रयासों पर जोर देने की आवश्यकता है जो कि सूखे के मौसम में, अधिक से अधिक वर्षाजल को संग्रहित कर सके। स्थानीय स्तर पर वर्षा के पानी का संचयन या संग्रहण को या तो जलाशयों, टैंकों या झीलों में जल को संग्रहित करके रखने के माध्यम से हो सकता है अथवा भूमिगत जल के पुनर्भरण द्वारा किया जा सकता है। ये पानी की आपूर्ति बढ़ाने के सरल उपाय हैं। आगामी भागों में वर्षा के पानी के संग्रहण की कुछ मुख्य विधियाें का वर्णन किया गया है।
पाठगत प्रश्न 30.1
1. यद्यपि भारत संसार का सबसे आर्द्र देश है, फिर भी उसके कुछ भागों में पानी की भीषण कमी है। इस पानी की कमी का क्या कारण है? (एक कारण)
2. भारत में औसतन सालाना वर्षा के दिनों की कितनी संख्या है?
3. ‘‘जल संचयन जल संरक्षण की दिशा में एक बुद्धिमत्ता से भरा कदम है।’’ कारणों सहित इसकी पुष्टि कीजिए।
4. विश्व में पानी के अभाव के पीछे कोई तीन कारण बताइये।
30.2 जल संग्रहण की पारंपरिक विधियाँ
यद्यपि जल संग्रहण (Water harvesting) आजकल विश्व भर में एक प्रकार का पुनर्जागरण कर रहा है। उसका इतिहास बाइबिल के समय तक जाता है। जल संचयन के उपकरण आज से चार हजार वर्ष पूर्व फिलिस्तीन और ग्रीस में मौजूद थे। प्राचीन रोम में प्रत्येक घरों में पानी संग्रहित करने के लिये हौज निर्मित होते थे और शहर की पानी की नालियों को घरों के आंगनों को जोड़ने की व्यवस्था थी। 3000 ई.पू. वर्ष के आस-पास, बलूचिस्तान और कच्छ के कृषक समाज पानी को संग्रहित करके उसका उपयोग सिंचाई के लिये करते थे।
हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ और काव्य रचनाएँ उस समय में प्रचलित जल संग्रहण और संरक्षण प्रणालियों का अच्छा दृश्य प्रकट कर देती है। बढ़ती हुई जनसंख्या, बढ़ता औद्योगीकरण और विस्तार करती कृषि ने अब पानी की मांग को और भी बढ़ा दिया है। जल-संग्रहण के प्रयास बांधों, जलाशयों और कुओं के खोदने और निर्माण आदि के द्वारा किया जा रहा है। कुछ देशों ने जल का पुनरावर्तन और उसमें से नमक दूर करने की क्रिया (Desalinate) पर जोर दिया है। जल संरक्षण अब दैनिक दिनचर्या का एक आवश्यक अंग बन गया है। जल संग्रहण के माध्यम से भूमिगत जल के पुनर्भरण का विचार लगभग अब हर समाज में महत्ता हासिल कर रहा है।
वनों में पानी धीरे-धीरे जमीन में रिस जाता है क्योंकि वन के पेड़-पौधे वर्षा को तितर-बितर कर देते हैं। तब यह भूमिगत जल कुओं, झीलों और नदियों में जाता है। वनों के संरक्षण का दूसरा अर्थ है जल का संग्रहण के क्षेत्रों में जल का संरक्षण करना। प्राचीन भारत में लोगों का मत था कि वन ‘‘नदियों की माताएँ’’ हैं एवं इसीलिये वे इन जलस्रोतों की आराधना करते थे।
30.2.1 प्राचीन भारत में जल संग्रहण की विधियाँ
पानी का संग्रहण भारत में बहुत प्राचीन काल से होता आ रहा है, हमारे पूर्वजों ने इस जल प्रबंधन की कला में प्रवीणता प्राप्त कर ली थी। विभिन्न संस्कृतियों की आवश्यकताओं के हिसाब से कई प्रकार की उपयुक्त जल-संचयन प्रणालियों का निर्माण किया गया था। लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व, सिंधु नदी के किनारे पनपती सिंधु घाटी सभ्यता एवं अन्य भागों जैसे भारत के पश्चिमी एवं उत्तरी भागों ने पानी की आपूर्ति की अत्यन्त सुलभ व्यवस्था एवं वाहित मल प्रणाली दुनिया को दी थी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नगरों की सड़कों के नीचे जिस विधि से नालियों को ढका गया था, उससे यह स्पष्ट होता है कि इस संस्कृति के लोग साफ-सफाई और स्वच्छता से कितने परिचित थे।
इसका एक और बहुत अच्छा उदाहरण ढोलावीरास नामक एक सुनियोजित नगर है जो गुजरात के रण क्षेत्र में खादीर बेट नामक एक उथले पठार पर स्थित है। सबसे प्राचीन जल-संचयन व्यवस्थाओं में से एक पश्चिमी घाट के निकट नानेघाट के निकट पाया जाता है, जो कि पुणे से 130 कि.मी. की दूरी पर है। इन पहाड़ों के पत्थरों में कई जलाशय खोदे गये थे, जो कि इस प्राचीन व्यापार के मार्ग पर यात्रा करते समय व्यापारियों को पेयजल प्रदान करने के काम आते थे। हर क्षेत्र में प्रत्येक किले की अपनी जल संग्रहण व संचयन की व्यवस्था होती थी, जिनको हौजों, तालाबों और कुओं के रूप मे पत्थर तोड़ कर बनाये जाते थे। ये अभी तक उपयोग में हैं। रायगढ़ जैसे कई किलों में पानी की आपूर्ति करने के जलाशय थे।
1. प्राचीन समय में, पश्चिमी राजस्थान के कुछ भागों में कई घर ऐसे बनाये जाते थे जिनमें प्रत्येक घर की छत पर जल-संग्रहण व्यवस्था होती थी। इन छतों से वर्षाजल को भूमिगत टैंकों में भेजा जाता था। यह व्यवस्था अभी भी सब किलों में, महलों और इस क्षेत्र के घरों में देखी जा सकती है।
2. भूमिगत पकी (सेंकी) हुई मिट्टी की पाइपें और नहरों का प्रयोग पानी के प्रवाह को नियमित रखने और दूर के स्थानों तक पहुँचाने के लिये होता था। ऐसी पाइपें अभी भी मध्य प्रदेश के बुरहानपुर, कर्नाटक के गोलकुंडा और बीजापुर एवं महाराष्ट्र के औरंगाबाद में प्रयोग में लायी जाती हैं।
3. वे वर्षाजल का सीधे रूप से संग्रहण करते थे। घर की छतों से, पानी को संग्रहित करके, अपने-अपने आँगनों में बने जलाशयों में बचा कर रखते थे। इसके अतिरिक्त वे वर्षा के पानी को खुले मैदानों से एकत्रित करके कृत्रिम कुओं में संग्रहित करके रखते थे।
4. बाढ़ की स्थिति में आई नदियों व झरनों के जल को एकत्रित करके, वे मानसून के व्यर्थ जाते पानी का संचयन करते थे और उसे गैर मानसूनी मौसम के कई प्रकार के जलाशयों में संग्रहित करते थे।
पाठगत प्रश्न 30.2
1. किन्हीं दो उदाहरणों को देकर यह सिद्ध कीजिए कि प्राचीन भारत में जल संचयन की प्रणाली मौजूद थी।
2. भूमिगत पानी को पुनर्भरण करने में वन किस प्रकार सहायक थे?
3. इस बात को बताइये कि प्राचीन समय में पश्चिमी राजस्थान के घरों में किस प्रकार जल संरक्षण होता था।
30.3 जल संग्रहण की आधुनिक विधियां
वर्षाजल के संचयन की तकनीकें : वर्षाजल के संचयन की दो मुख्य तकनीकें हैं:
1. भूमि की सतह पर भविष्य में प्रयोग के उद्देश्य से किया गया वर्षा जल का संग्रहण।
2. भूमिगत जल का ही पुनःभरण करना।
वर्षा के पानी को सतह पर ही संग्रहित कर लेना एक पारंपरिक तकनीक है और इसके लिये टैंकों, तालाबों, चैक-बांध, बैयरो जैसे जल कोषों का प्रयोग किया जाता था। भूमिगत जल का पुनःभरण वर्षा के पानी के संचयन की एक नयी संकल्पना है और प्रायः इसके लिये निम्नलिखित प्रकार के संरचनाओं (ढांचों) का प्रयोग किया जाता हैः
1. गड्ढेः पुनःभरणगड्ढे या पिट्स को उथले जलभृत के पुनर्भरण के लिये बनाया जाता है।
2. जलभृत (Aqifer) : यह रेत, पथरीली या चट्टानों की बनी मिट्टी की छिद्रनीय परतें हैं जिनसे प्रचुर मात्रा में जल को उपयोग करने के लिये निकाला जा सकता है। इनका निर्माण एक से दो मीटर की चौड़ाई में और एक से 1.5 मीटर की गहराई में किया जाता है और जिनको रेत, मिट्टी, कंकड़ों से भी भर दिया जाता है।
3. खाइयाँ (Trenches) : इनका तब निर्माण होता है, जब पारगम्य (भेद्य) चट्टानें उथली गहराई पर उपलब्ध होती है। खाई 0.5 से 1 मीटर चौड़ी, 1 से 1.5 मीटर गहरी और, 10 से 20 मीटर की लम्बी हो सकती है। इसकी चौड़ाई, लंबाई और गहराई जल की उपलब्धता पर निर्भर है। इनको पाटने के लिये फिल्टर सामग्री का प्रयोग होता है।
4. खुदे हुए कुएँ : मौजूदा कुओं का पुनःभरण ढाँचे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह आवश्यक है कि पानी को कुएँ में डालने से पहले उसको फिल्टर मीडिया (छानने वाले यंत्रों) से गुजारना चाहिये।
5. हाथ से संचलित पंप (हैंडपंप) : यदि जल की उपलब्धता सीमित हो, तो मौजूदा हैंडपंपों को उथले/गहरे जलभृतों को पुनर्भरित करने के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। जल को छानने के यंत्रों द्वारा प्रवाहित करना जरूरी है। इससे पुनःभरण के काम आने वाले कुओं में अवरोधन नहीं होगा।
6. पुनःभरण कुएँ : अधिक गहरे जलकोषों के पुनःभरण के लिये 100 से 300 मि. मी. व्यास के पुनःभरण कुओं का प्रायः निर्माण होता है। इनमें जल को फिल्टर उपकरणों से अवरोधन को रोकने की दृष्टि से पारित किया जाता है।
7. पुनःभरण शाफ्टः उथले जलकोषों के पुनःभरण के लिये इनका निर्माण होता है। (ये मिट्टी की गीली सतह से नीचे स्थित है)। इन पुनःभरण शाफ्टों का 0.5 से 3 मीटर का व्यास है और ये 10 से 25 मीटर गहराई के हैं। ये शाफ्ट पत्थरों और मोटी रेत से भरा होता है।
8. बोर कुओं के पार्श्व शाफ्टः उथले एवं गहरे जलभृतों के पुनःभरण के उद्देश्य से, पानी की उपलब्धता से संबंधित, 1.5 मीटर से 2 मीटर चौड़े और 10 से 30 मीटर लम्बे पार्श्व शाफ्टों का एक या दो बोर कुओं के संग निर्माण होता है। पार्श्व शाफ्ट के पीछे पत्थर और मोटी रेत बिछी होती है।
30.3.1 तत्काल प्रयोग न होने वाले जल का मौजूदा सतही जलाशयों में परिवर्तन और उसके लाभ
शहरों के अंदर और आस-पास होती निर्माण क्रियाओं के कारणवश जलाशय लगभग सूख गये हैं तथा इनका घरों के प्लाटों के रूप में परिवर्तन हो रहा है। तत्काल प्रयोग में न आने वाले पानी को इन टैंकों व जलाशयों से मुक्त प्रवाह हो सकता है, जिसको जल-संचयन व्यवस्था के रूप में ढाला जा सकता है। इस पानी को निकटतम जलाशयों या टैंकों में परिवर्तित किया जा सकता है, जो कि अतिरिक्त पुनःभरण का निर्माण करता है।
शहरी क्षेत्रों में घरों, फुटपाथों और सड़कों के निर्माण ने खुली मिट्टी की मात्रा इतनी कम कर दी है कि पानी के रिस जाने की संभावना ही बहुत कम हो गई है। भारत के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में, बाढ़ का पानी शीघ्रता से नदियों में समा जाता है जो वर्षा रुकने के बाद बहुत जल्दी सूख जाती है। यदि इस पानी को संग्रहित करके भूमि को सींचने दिया जाये, तो वह भूमिगत आपूर्ति का पुनःभरण कर देगी।
यह शहरी क्षेत्रों में विशेषकर- जल संरक्षण की एक अत्यन्त लोकप्रिय विधि बन जाती है। वर्षाजल का संचयन मूल रूप से इमारत की छत पर वर्षा के पानी का संग्रहण और फिर आगामी प्रयोग के लिये उसका भूमिगत संग्रहण और संरक्षण है। ऐसा करना न केवल भूमिगत जल की कमी को रोक देता है, बल्कि वह घटती जल तालिका के स्तर को बढ़ा देता है। इस तरह पानी की आपूर्ति में सहायक सिद्ध होता है। वर्षा के जल का संचयन और उसका कृत्रिम पुनःभरणअत्यंत महत्त्वपूर्ण मुद्दों के रूप में सामने आ रहे हैं। यह आवश्यक है कि वर्षा के मौसम में सतही पानी का संरक्षण किया जाये व भूमिगत जल के स्तर में कमी होने पर रोक लगाई जाये। समुद्री पानी के तटीय क्षेत्रों में प्रवेश को भी रोकना चाहिये अर्थात एक सीमा से अधिक जब समुद्री जल तटों की ओर आ जाता है, तब यह तटीय भूमिगत जल की संपदा को खारा बनाकर खराब कर देता है।
आप सभी को एक जल संचयन व्यवस्था के लिये पानी की आवश्यकता है और उसके संग्रहण के लिये एक स्थल की। प्रायः वर्षाजल को इमारतों की छतों पर संग्रहित किया जाता है, जहाँ या तो उसका संग्रहण हो सके या उसका तत्काल प्रयोग हो सके। इस सतह से आप व्यर्थ जाते जल को पौधों, पेड़ों, बागों या जलभृतों तक पहुँचाकर कर सकते हैं।
भूमिगत जल के पुनःभरण की महत्ता को पहचान कर, भारत सरकार, कई राज्य सरकारें, गैर-सरकारी संगठन व अन्य संस्थान देश में वर्षा के जल का संचयन करने को प्रोत्साहन दे रहे हैं। कई सरकारी कार्यालयों को यह निर्देश है कि दिल्ली में और भारत के कुछ अन्य शहरों में जल संचयन करें।
नगर योजनाकर्ता और शहरी अधिकारीगण ऐसे अधिनियमों को पारित कर रहे हैं, जो सब नई इमारतों में जल संचयन को अनिवार्य कर देंगे। यदि एक नयी इमारत में वर्षा के पानी के संचयन की व्यवस्था नहीं है, तो उसे कोई पानी या सीवेज का कनेक्शन नहीं दिया जायेगा। भूमिगत जल के स्तर की बढ़ोतरी के लिये सब अन्य शहरों में ऐसे नियमों के लागूकरण की आवश्यकता है।
वर्षाजल के संचयन के लाभ कुछ इस प्रकार हैं :
i. जल की उपलब्धता में वृद्धि।
ii. घटती हुई जल तालिका पर नियंत्रण।
iii. यह पर्यावरण के पक्ष (मित्र) में हैं।
iv. फ्लोराइड, नाइट्रेट और खारेपन के तनुकरण के माध्यम से भूमिगत जल के स्तर में बढ़ोत्तरी।
v. विशेषकर शहरी क्षेत्रों में भूमि के कटाव और बाढ़ों से बचाव।
वर्षाजल का संचयन - एक सफलतम की
कहानीः
राजस्थान के रूपारेल नदी के आस- पास का
क्षेत्र जल संचयन का एक सटीक उदाहरण है।
यद्यपि इस स्थान पर बहुत कम वर्षा होती
है , फिर भी संतुलित संचालन और संरक्षण
की प्रणालियों के कारण यहाँ बड़े पैमाने
पर वनों के काटे जाने पर और कृषि -
क्रियाओं के कारणवश नदी के जल स्तर में
कमी होने लगी और 1980 के दशक के दौरान
सूखे - जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगी।
स्थानीय जनता के निर्देशन में क्षेत्र की
महिलाओं को जोहड़ (गोलाकार
तालाब ) और बांध बनाने के लिये प्रेरित
किया गया। जिससे वर्षाजल का संग्रहण
हो सके। धीरे- धीरे संरक्षण और जल संचयन
की सही विधियों के अनुसरण के कारण ,
पानी वापिस आने लगा। नदी का
पुनर्जागरण इस स्थल के पर्यावरण को और
उसके तटों पर बसते लोगों के जीवन को
परिवर्तित कर गया। उनका अपने
प्राकृतिक वातावरण के साथ संबंध दृढ़ हो
गया है। इस बात से यह प्रमाणित हो गया
है कि मानव - जाति पर्यावरण की
मालिक नहीं , बल्कि उसका अंश है। यदि
मानव जाति प्रयास करे , तो हमारे द्वारा
ही किये गये क्षय को कम किया जा
सकता है।
30.3.2 कृषि में वर्षाजल का संचयन और जल संरक्षण
जल पौधों एवं फसलों के विकास के लिये अति आवश्यक है। इसीलिये कृषि के क्षेत्र में जल का संरक्षण भी बहुत आवश्यक है। एक घटती हुई जल तालिका और सिंचाई के कारण से खारेपन में वृद्धि होना एक गंभीर विषय बन गया है। संसार भर में इस समस्या से निपटने के लिये जल संचयन और पुनःभरण की कई विधियों को प्रयोग में लाया जा रहा है। उन क्षेत्रों में जहाँ वर्षा कम है तथा पानी का अभाव है, वहाँ स्थानीय लोगों ने अपने क्षेत्र के अनुरूप सरल तकनीकों का प्रयोग कर, जल की मांग को घटा दिया है।
1. भारत के मरुस्थल अथवा अर्ध-मरुस्थल क्षेत्रों में, टैंक प्रणाली की व्यवस्था पारंपरिक रूप से कृषि उत्पादन का आधार है। टैंकों का निर्माण भूमि में खुदाई करके, वर्षा जल का संग्रहण करके किया जाता है।
2. विशाल भारतीय मरुस्थल में स्थित राजस्थान प्रदेश में थोड़ी सी ही वर्षा होती है, परन्तु यहाँ के लोगों ने इधर की जटिल परिस्थितियों में भी वर्षाजल एकत्रित करने का प्रयास किया। बड़े-बड़े जलाशय जिन्हें खादीन (Khadin) कहते हैं, बांध जिन्हें जोहड़, टैंक कहते हैं एवं अन्य विधियों का प्रयोग जल प्रवाह को रोकने एवं एकत्रित जल प्रवाह के लिये प्रयोग किया जाता है। मानसून मौसम के अंत में, इन जलाशयों का पानी पौधों को सींचने के काम के प्रयोग में लाया गया। देश के अन्य भागों में समान प्रणालियों का प्रयोग हुआ। इनको विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है। - उत्तर प्रदेश में जल तलाइयों के नाम से, मध्य प्रदेश में हवेली व्यवस्था के नाम से, बिहार में अटर के नाम से एवं और भी।
पाठगत प्रश्न 30.3
1. किन्हीं तीन ढांचों का नाम लीजिए जिन्हें भूमिगत पानी को पुनःभरण करने के लिये निर्मित किया जा सकता है।
2. जल संग्रहण करने के लिये, उन नये अधिनियमों की चर्चा कीजिये जो नागरिक अधिकारियों द्वारा कई नगरों में प्रस्तावित हो रहे हैं।
3. किसी भी राज्य में वर्षाजल के संचयन के चार लाभों का जिक्र कीजिये।
4. राजस्थान, यू.पी. और मध्य प्रदेश राज्यों के कुछ ऐसे ढांचों का नाम लीजिए, जिन्हें सूखे मौसम में पौधों के लिये वर्षाजल को संग्रहित करने का प्रयोग होता है।
30.4 घरेलू स्तर पर वर्षाजल का संचयन
जल संचयन की परिभाषा बहुत सरल है। यह अपनी संपत्ति पर गिरते वर्षा के पानी का संग्रहण है, जिसको बाद में अपने ही घर या उसके आँगन में किसी उपयोग में लाया जाता है। हमारे देश के कई घरों के मालिक वर्षा के पानी का पेड़ों, बागों इत्यादि को सिंचित करने में प्रयोग करते हैं। अपने ही घर के चारों ओर जल संचयन से संबंधित विचारों को इन उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है और अपनी संपत्ति के रख-रखाव के खर्च को कम किया जा सकता है। एक नये निवास स्थान को कई प्लॉटों के स्थान पर एक ही प्लॉट पर निर्मित करने, एक मुख्य उपविभाग का ढांचा तैयार करना, या कुछ वर्तमान स्थितियों में ही कुछ विकास करना- इस सब घरेलू योजनाओं में जल-संचयन प्रणालियों को आसानी से सम्मिलित किया जा सकता है।
क्षेत्र, आवश्यकता और बजट के अनुरूप, जल संचयन व्यवस्थाएँ सरल या जटिल रूप की हो सकती हैं। वर्षाजल के संचयन व्यवस्था को उसके चार मुख्य भागों की ओर ध्यान देकर भी समझा जा सकता है।
(क) वर्षाजल को एकत्रित करना
वर्षाजल को घर की छत से पेतियो (Patio) या गाड़ी पार्क करने के स्थान से या किसी भी अपारगम्य सतह से इकट्ठा कर संग्रहित किया जा सकता है। केवल ध्यान में यह बात रखें कि संग्रहित पानी आपकी घर की नींव से कम से कम तीन फीट की दूरी पर हो। संचयित होने वाले जल की मात्रा उसके इकट्ठा किये जाने वाले क्षेत्र पर निर्भर है। संग्रहित जल की मात्रा के आकलन के लिये, आप अपने घर की छत (कैचमेंट) के क्षेत्र को प्रति वर्ग (मीटर में) वर्षा की दर से गुणा कर दें। (भारत की औसतन वर्षा 1.17 मीटर है।) इसके पश्चात उस मूल्य को 0.909 से गुणा कर लें। यह वाष्पीकरण व अन्य क्षयों का हिसाब है और फिर इस निष्कर्ष को 1000 से गुणा कर लें- लीटरों की संख्या को 1000 से गुणा कर लें- लीटरों की संख्या को निर्धारित करने के लिये। उदाहरणार्थ- एक वर्ग मीटर पानी एकत्रित करने का स्थान प्रतिवर्ष लगभग 105300 लीटर पानी को प्रदान करेगा। (1.17×100×0.90×1000=105300)
(ख) संग्रहण
संग्रहण-व्यवस्थाओं की सरलता-जटिलता हमारी आवश्यकताओं से संबंधित है। एक प्रभावशाली व्यवस्था में इमारत की छत पर स्थित ‘गटर’ और ‘अधस्टोंटी’ (Downspout) द्वारा संभारित एक 250 लीटर का ड्रम (बड़े आकार का डिब्बा) शामिल है। एक अधिक समग्रित प्रणाली में अंतर्हित हौज, (buried cisterns) समयानुसार संचालित है। पानी को गटर या अधस्टोंटी की स्क्रीन के ऊपर संचालित करने से पहले पत्तों और गंदगी इत्यादि को छानने की जरूरत है। शैवाल वृद्धि और मच्छरों के लगातार पैदा होने की संभावना को कम करने के लिये टैंकों और हौजों में रखे पानी को ढकना भी जरूरी है। संग्रहणों के टैंकों पर तैरते हुए ढक्कनों को लगाना एक प्रभावशाली हल है।
(ग) वितरण
गटर (एक पतली नहर जो कि इमारत की छत से वर्षाजल का संग्रहण करके उसे इमारत से दूर भेजने का काम करती है, प्रायः एक नाली में) और ‘अधस्टोंटी’ (जो कि वर्षा के पानी को गटर से समतल भूमि तक ले जाने की एक सीधी पाइप है) या ‘बर्म’ (Berms) (जो कि दो क्षेत्रों को विभाजित करता हुआ एक उठा हुआ इलाका) और ‘स्वेल’ (Swales) (जो कि एक नम या दलदली निचली सतह की जमीन) है, इनको वर्षाजल को इकट्ठा करके सीधे भूमि में या बागों/पार्कों के पौधे तक में वितरित किया जा सकता है। बहुत से लोग पहले वर्षाजल को संचयित करते हैं और उसके पश्चात उसे नियमित ‘डिंप’ सिंचाई व्यवस्था (Drip irrigation system) के माध्यम से वितरित कर देते हैं।
(घ) व्यवस्था का रख-रखाव
जल-संचयन व्यवस्थाओं को कभी-कभी रख-रखाव की आवश्यकता पड़ती है और यह कार्य सफलता से पूरा हो जाता है। ‘गटरों’ पर रखी गई छननियों की नियमित रूप से सफाई की जानी चाहिये और इसी प्रकार संग्रहण में काम आने वाले टैंकों को भी समय-समय पर साफ कर देना चाहिये।
30.4.1 वर्षाजल के संचयन के लाभ
यद्यपि अधिकतर लोग इसे महसूस नहीं कर पाते हैं, परन्तु वे कुछ इंचों की ही वार्षिक वर्षा जो हमारे देश में होती है, वह एक अनमोल संसाधन है। जल संचयन न केवल बाढ़ों की संभावना को घटाता है, बल्कि वह समुदाय की भूमिगत जल पर निर्भरता को भी कम करता है, परन्तु भूमिगत जल के विपरीत, वर्षा का पानी अत्यन्त स्वच्छ है, जिसमें किसी भी प्रकार का खारापन या कृत्रिम तत्व नहीं पाये जाते हैं। इस कारण वर्षाजल सिंचाई, वाष्पीकरण, कूलरों, कपड़े धोने व अन्य कई कार्यों के लिये उपयुक्त हैं। इससे सख्त तत्वों की गंदगी जमा नहीं होती और साबुन के प्रयोग में भी कोई कठिनाई नहीं आती। कल्पना कीजिये कि आपको अपने वाष्पीकरण कूलर को हर वर्ष साफ न करना पड़े। पानी के बहने को कम करने एवं वर्षाजल का प्रयोग जो कि आपके वाष्पीकरण कूलर पर प्रतिवर्ष गिरता है। आपकी संपत्ति पर जो वर्षा का पानी गिरता है, उस बहुमूल्य संसाधन का आप तत्काल प्रयोग अपने घर और उसके आँगन पर कई प्रकार से कर सकते हैं।
i. अनमोल भूमिगत जल को संरक्षित करना है और अपने महीने भर के पानी के बिल का व्यय कम करता है।
ii. स्थानीय बाढ़ें और सीवेज व्यवस्था इत्यादि से संबंधित समस्याओं को कम करता है।
iii. भूमि में नमक पदार्थों की वृद्धि को बहा देता है और इसका प्रभाव आपके पौधों के बेहतर स्वास्थ्य पर दिखता है।
iv. भूमि के प्रयोग और संपत्ति के रखरखाव की आवश्यकताओं को कम करता है।
v. विभिन्न कार्यों के लिये अत्यंत उच्चतम स्तर के पानी को प्रदान करता है।
शिक्षार्थियों के लिये कुछ क्रिया कलाप
क्रियाकलाप 1: अपने घर/कार्यस्थल का ऑडिट (मुआइना) कीजिये। क्या आप निम्नलिखित में से कोई भी देख सकते हैं?
i. लीक और पानी का टपकना।
ii. शौचालय या मूत्रालय में जहाँ कोई जल संरक्षण का यंत्र प्रयोग में न हो।
iii. घर के बगीचों में प्रयोग होती पाइपों के खुले मुँह, जिससे पानी लगातार बहता हो।
iv. दाँत साफ करते समय या बर्तन धोते समय, कोई ऐसे नलके जिन्हें खुला छोड़ दिया जाता हो।
एक विषय को चुनिये और उससे बचाव की कुछ युक्तियाँ खोजिये। यहाँ पर कुछ ऐसी ही कार्य-योजनाओं के उदाहरण दिये गये हैं, जो पानी के क्षय को कम करने में मदद करते हैं।
क्रियाकलाप 2: कार्ययोजनाओं के लिये कुछ विचार
(क) पानी का सुप्रयोग करने से संबंधित कुछ विज्ञप्तियों का प्रारूप तैयार कीजिए। इन विज्ञप्तियों को अधिक से अधिक संख्या में अपने स्थानीय समुदाय में बाँट दीजिए। यह जानकारी पहुँचाने का एक सरल और प्रभावशाली तरीका है।
(ख) अपने स्कूल के शौचालय के अनुरूपान्तर (Retrofit) के लिये एक सस्ती, हल्की तकनीक के हल का प्रयोजन कीजिये। शौचालय के हौज में फ्लश के लिये एक लीटर प्लास्टिक की बोतल को पानी से भरकर रखिये। इससे 1 लीटर पानी (फ्लश से) की बचत होती है। यह स्कूलों जैसे स्थानों में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है, जहाँ पर शौचालय बार-बार प्रयोग होता है।
(ग) एक तकनीकी योजना के रूप में, आपकी कक्षा एक ऐसी तकनीक या प्रणाली का आविष्कार कर सकती है, जो छत से वर्षा के पानी को इकट्ठा कर, स्कूल के बगीचों में प्रयोग की जा सकती है। नीचे जाती पाइप से जरूरत से अधिक पानी (बहते) को इस काम के लिये एक बाल्टी में संग्रहित किया जा सकता है।
या तो आप एक घर में निर्मित छिड़काव के यंत्र का आविष्कार कर, घर के बगीचे के विशेष भागों में पानी दे सकते हैं। इस तरह आप पानी को बेकार प्रयोग कर उसे व्यर्थ जाने से बचा सकते हैं। एक ऐसी सशक्त हौज़पाइप का प्रयोग कीजिए। जिसमें उपयुक्त स्थानों पर छोड़े गये छेद हों तो यह युक्ति अच्छी काम आती है।
(घ) अपने अध्ययन केन्द्र/कार्य स्थल पर जल बुद्धिमत्ता सप्ताह का आयोजन कीजिये। आप यह जानने के लिये कि आपका स्कूल प्रति सप्ताह कितना पानी प्रयोग में लाता है, आप स्वयं पानी के मीटर को पढ़ सकते हैं। फिर आप इस पानी की मात्रा को एक-चौथाई कम करने की कोशिश कर सकते हैं। (औसतन, इन स्थानों पर आप अपने पानी के उपभोग को लगभग एक तिहाई की दर तक कम कर सकते हैं। प्रतिदिन एक घटना को संयोजित कर, एक पूरे संगठन को हम अपने प्रयासों में सम्मिलित कर सकते हैं। यह दर्शाने के लिये कि पानी के क्षय को कैसे कम किया जाये।
(ड.) विदेशज पौधों के स्थान पर स्थानीय पौधों को उगाइयेः (स्थानीय पौधे, विदेशज पौधों से कम पानी लेते हैं) माली से कहिये कि वह पौधों को पानी दिन की ठंडक में दें (प्रातःकाल या उससे भी बेहतर, देर दोपहर को) आप स्वयं संचालित जल संरक्षण का बागवानी का अपना क्लब भी शुरू कर सकते हैं। कुछ स्थानों पर बहुत सफल बागवानी के क्लब हैं। और वे अपने पौधों की इस तरह देख-रेख करते हैं कि पानी का बचाव हो।
पाठगत प्रश्न 30.4
1. घरेलू स्तर पर जल संचयन के लिये उपयोग में लाये जाने वाले चार मुख्य घटकों की सूची दीजिये।
2. हौजों/टैंकों में वर्षा के संचयित जल के संग्रहण को करते समय किन्हीं दो बचावी प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
3. घरेलू स्तर पर जल संचयन से हमें कैसे लाभ पहुँचता है? (कोई भी तीन)
आपने क्या सीखा
i. यद्यपि पृथ्वी पर बहुत पानी है, फिर भी अलवण जल की मात्रा उसका एकमात्र छोटा अंश है।
ii. पानी की बढ़ती मांग के कारण, यह संसाधन अत्यधिक दोहन किया गया है।
iii. यद्यपि भारत में काफी वर्षा होती है, उसके समय और स्थान के अनुरूप असमान वितरण के कारण, उसके कई भागों में पानी का गंभीर अभाव है।
iv. अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये भोजन-आहार प्रदान करने के लिये, भारत को अधिक खाद्यानों को उगाने की अत्यंत आवश्यकता है।
v. क्योंकि वर्षा ऋतु छोटी होती है, इसलिये कृषि-क्रियायें सिंचाई पर निर्भर हैं।
vi. भारत में कुल प्रयोग होते पानी की मात्रा का लगभग 85% अंश सिंचाई में जाता है।
vi. कृषि और अन्य विकास संबंधी गतिविधियाें की बढ़ती मांग के साथ-साथ जल संसाधन अत्यधिक दोहित है।
vii. इस गंभीर स्थिति को शहरीकरण और औद्योगीकरण, जल संसाधनों के अत्यधिक प्रयोग व प्रदूषित करने के कारण और अधिक गंभीर बना देते हैं।
viii. इस प्रकार संरक्षण, जल के बचाव की सबसे मुख्य और सरल विधियों में से एक है।
ix. वर्षाजल का संचयन वर्षाजल को संग्रहित करके, उसके सीधे प्रयोग के लिये उसका संरक्षण है या उसे कृत्रिम विधि से भूमिगत जल को पुनःभरण करने की प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है।
x. परंपरानुसार, वर्षाजल का संचयन, संसार भर में विभिन्न विधियों द्वारा होता है।
xi. वर्षाजल के संचयन का सबूत सिंधु घाटी, फिलस्तीनी, यूनानी और रोमन सभ्यताओं में पाया जाता है।
xii. इन सभ्यताओं में जल संरक्षण की बुद्धिमत्ता थी।
xiii. वर्षाजल के संचयन को हाल में काफी महत्ता मिल रही है क्योंकि भारत जैसे कई देश पानी के गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं।
xiv. देश में वर्षा के पानी के संचयन को प्रोत्साहन देने के लिये, भारत की केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों ने पहल की है।
xv. कई स्थानीय संस्थान निवास-स्थलों, बड़ी इमारतों और दफ्तरों में वर्षाजल संचयन प्रणालियों की स्थापना को अनिवार्य बना देने के विषय में विचार कर रहे हैं।
पाठान्त प्रश्न
1. हमें वर्षा के पानी के संचयन के पीछे क्यों करना चाहिए?
2. वर्षा जल संचयन की पारंपरिक विधियों का वर्णन कीजिये।
3. प्राचीन भारत में वर्षा के पानी के संचयन की कौन सी विधियाँ प्रयोग में थीं?
4. वर्षाजल का संचयन किस प्रकार जल के अभाव की पूर्ति करने में सहायक होता है?
5. छतों के ऊपर की गई वर्षा के पानी के संचयन का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
6. भूमिगत जल का कृत्रिम पुनःभरण कैसे होता है?
7. भारत में वर्षा के पानी के संचयन की सफलता भरी कहानी का विवरण दीजिये।
8. वर्षाजल के संचयन के मुख्य लाभों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
9. वर्षाजल के संचयन में काम आये चरणों का वर्णन दीजिये।
10. भारत में वर्षा के पानी के संचयन पर सरकार द्वारा की गई पहल का संक्षिप्त विवरण कीजिये।
पाठगत प्रश्नों के उत्तर
30.1
1. समय और स्थान के अंतरालों में वर्षा का असमान वितरण।
2. 40 दिन।
3. अलवण जल का अभाव और बढ़ती हुई जनसंख्या, हमारे देशों के कुछ क्षेत्रों में वर्षा का असमान वितरण, बढ़ता हुआ औद्योगीकरण और शहरीकरण- परन्तु इस कम मात्रा में उपलब्ध संसाधन की अत्यधिक मांग। अतः वर्षा के पानी का संचयन और उसको सूखे मौसमों में संचित रखने की आवश्यकता।
4. अकाल (सूखा), बढ़ती जनसंख्या, सिंचाई की बढ़ती मांग, प्रदूषण जो कि पानी की पेयता और उपयोगिता को कम कर रहा है, उपलब्ध पानी का दुरुपयोग (कोई भी तीन)
30.2
1. सबसे पुरानी जल संचयन व्यवस्थाओं में एक हमारे ही देश के पश्चिमी घाटों के निकट स्थित पुणे शहर के पास पायी जाती है यहाँ पर पहाड़ी के पत्थरों में पेयजल प्रदान करने के लिये कई जलाशयों को खोद लिया गया था। रायगढ़ जैसे किलों में पानी के संरक्षण व संचयन के लिये टैंकों, तालाबों, इत्यादि का निर्माण हुआ था। ये जलाशय और कुएँ अभी भी प्रयोग में लाये जाते हैं, सिंधु घाटी सभ्यता की मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नगरों के खंडहर शहरी पानी की आपूर्ति और नालियों की एक सुनियोजित व्यवस्था को दर्शाती है। (कोई भी दो) या कोई अन्य।
2. वनों के पेड़-पौधे (वनस्पति) पानी को भूमि में रिस जाने में सहायक हैं। इस प्रकार वे जल तालिका का पुनःभरण करते हैं।
3. इस क्षेत्र के हर एक निवास स्थल का निर्माण इस प्रकार हुआ था कि वह वर्षा जल का संचयन कर सके और इस वर्षा जल को भूमिगत जलाशयों में संरक्षित रखा जाता था। इस व्यवस्था को अभी भी देखा जा सकता है।
30.3
1. कुओं की धुरियों (शाफ्ट) का पुनःभरण करना, खाई, गड्ढे, बांधों या बण्ड पर नियंत्रण रखना। बोर कुंओं के साथ पृष्ठीय शाफ्ट (कोई भी तीन)।
2. यदि किसी नयी इमारत के पास वर्षा के पानी के संचयन की व्यवस्था नहीं है, तो उसे पानी या सीवेज का कनेक्शन नहीं दिया जायेगा।
3. पानी की उपलब्धता में वृद्धि करती है, घटती जल तालिका पर नियंत्रण करती है, नमक इत्यादि के तनुकरण द्वारा भूमिगत जल स्तर में बढ़ोत्तरी करती है, भूमि को अपरदन से बचाती है- इसको और बाढ़ को खासकर शहरी क्षेत्रों में नियंत्रण में लाती है।
4. खादीन, जोहाड़, तलाई, हवेली (कोई भी तीन)
30.4
1. स्थान/क्षेत्र जहाँ पर वर्षा का पानी इकट्ठा किया जा सकता है, संरक्षण का कोष, वितरण का भाग, व्यवस्था को कायम रखना।
2. संरक्षण के काम में लाये जाने वाले जलकोषों को ढक कर रखना, ताकि वहाँ मच्छर इत्यादि पनप न पाएँ और- शैवाल वृद्धि भी न्यूनतम हो।
3. (क) भूमि में पाये जाने वाले जल का संरक्षण व महीने भर में आने वाले पानी के बिल की दर में कमी।
(ख) स्थानीय बाढ़ों और नालों के बह जाने की समस्याओं में कमी।
(ग) भूमि से नमक (लवणों) को बहा देता है।
(घ) बागवानी के लिये उत्तम स्तर के पानी को जल कोड प्रदान करता है। (कोई तीन)
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सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ।
एक खबर
संपादक
विनोद मेघवानी
 स्वतंत्र पत्रकार

जल


सोमवार, 24 जून 2019

भ्र्ष्टाचार कब खत्म होगा आम आदमी की जिंदगी से ,,,एक खबर

पुरा देश खुश है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के पहले कार्यकाल में किसी भी मंत्री ने भ्र्ष्टाचार नही किया किसी भी मंत्री ने रिश्वत नही ली ये सत्य है की मोदी के कार्यकाल में केंद्र सरकार के किसी भी मंत्री ने कोई अनैतिक कार्ये नही किया पर,,,,उससे देश मे भ्र्ष्टाचार खत्म  हो गया ये नही कह सकते,,,आप भारत के किसी भी शहर में जाओ,,, आप को भ्र्ष्टाचार का एक ही अड्डा मिलेगा,,,वो है  हर शहर का नगर निगम,,,,,,, या नगर पालिका ,,,या साडा प्रधिकरण,,,, हर किसी का,,,परसेंट बंधा हुआ है,,,, 


इस लेख के लिये लेखक जिम्मेदार नही सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार है  ये 


एक खबर,,,

संपादक 

स्वतंत्र लेखक

विनोद मेघवानी 



आज के इस आर्टिकल में हमने भ्रष्टाचार पर भाषण Speech on Corruption in Hindi पुरे विश्व में भ्रष्टाचार ने हर कार्य क्षेत्र को खोखला बना दिया है।

भ्रष्टाचार पर भाषण Speech on Corruption in Hindi

सभी आदरणीय श्रोताओं को सुप्रभात। आज मैं भ्रष्टाचार पर आप सभी के सामने अपने विचार रखना चाहते हूँ।

हमारा देश भारत , एक विशाल देश है। इतने विशाल देश में प्रजातंत्र को कुशलता से चलाने के लिए काफी सारे अधिकारियों और कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। इन सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है और यह उम्मीद की जाती है कि वे देश अपने पद की गरिमा रखेंगे एवं भ्रष्टाचार से बचेंगे।

लेकिन देश का दुर्भाग्य उस वक़्त नजर आता है जब ये कर्मचारी और अधिकारी ही भ्रष्टाचार दिखाते हैं और भ्रष्टाचारी हो जाते हैं। भ्रष्टाचार एक तरह का दीमक है जो हमारे देश को खा रहा है। बड़े बड़े नेताओं के घोटालों से लेकर छोटे छोटे कर्मचारियों के चाय पानी तक, हर जगह भ्रष्टाचार ने अपने चरण पसार रखे हैं।

ज़रा सोचिए आप किसी दफ्तर में जाकर अपना कोई काम करवाना चाहते हैं। उदाहरणतः आप राशन दफ्तर जाकर अपना राशन कार्ड बनवाना चाहते हैं। सबसे पहले आपको अपनी अर्जी, उचित अधिकारी तक पहुंचाने के लिए रिश्वत देनी होगी।

उसके बाद इस अधिकारी को रिश्वत देकर आप फाइल पर मोहर लगवा सकेंगे। उसके बाद वे लोग जो निरीक्षक के तौर पर आपका ब्योरा लेने आयेंगे उन्हे भी आपको रिश्वत देनी होगी, तब ही आपका ब्योरा दर्ज किया जाएगा। यह दुखद है।

भ्रष्टाचार का एक पहलू यह भी है कि भ्रष्टाचार का शिकार केवल गरीब व्यक्ति

ही होता है या ऐसा कहा जाए कि भ्रष्टाचार से फर्क केवल गरीबों को ही पड़ता है तो गलत नहीं होगा। आज के समय में वे सभी लोग जो धनी हैं उनके लिए ज्यादा धन खर्च करके अपना काम करवाना कोई बड़ी बात नहीं है। वे चाहते हैं कि उनका काम जल्द से जल्द हो जाए। उसके लिए वे कुछ भी करना चाहते हैं।

गौरतलब है कि भ्रष्टाचार ने आजादी के बाद देश को अंग्रेजों से भी ज्यादा परेशान किया है। भ्रष्टाचार तेजी से फैल रहा है और आजादी के बाद यह सबसे ज्यादा फैलने वाला सामाजिक विकार है।

इसका इतना अधिक फैलाव मुख्य रूप से अवसरवादी नेताओं के कारण हो पाया है। वे सभी लोग जो भ्रष्टाचार करते हैं, उनके लिए देश बिल्कुल भी मायने नहीं रखता। उनके लिए उनके फायदे से ज्यादा कुछ भी मायने नहीं रखता।

वे चाहते हैं कि उनका घर भर जाए और देश यदि खोखला हो रहा है तो होता रहे। लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि उनका घर भी इसी देश में ही आता है। वे देश को बेच रहे हैं और उन्हे इस बात की भी जरा सी परवाह नहीं कि यह भविष्य में कितना ज्यादा हानिकारक साबित हो सकता है।

ये लोग अपने फायदे के लिए भारत की संस्कृति और परम्परा को भी नष्ट कर रहे हैं। वे लोग जो आजकल एक सही दिशा में काम कर रहे हैं, उन्हे भी सही दिशा में काम करने नहीं दिया जाता। यदि कोई चाहे की वह बिना भ्रष्टाचार के एवं बिना रिश्वत लिये अपना काम कर ले, तो वह ऐसा नहीं कर सकता।

उसका जीना मुश्किल कर दिया जाएगा एवं उसे यथासंभव हर तरह से परेशान किया जाता है। उनके ऐसे कृत्यों के कारण ईमानदारी दम तोड़ देती है और एक ईमानदार इंसान बेईमानी करने पर मजबूर हो जाता है।

साल 1947, भारत अंग्रेजों से आजाद हो गया। नई सरकारें बनी और देश को विकास के पथ पर अग्रसर किया जाने लगा। लेकिन धीरे धीरे भारत में भ्रष्टाचार बढ़ता गया। लोगों का सरकार और सरकारी कर्मचारियों पर से विश्वास घटता गया।

इस पर रोज रोज आने वाले नए घोटालों की खबरों ने लोगों में से यह विश्वास भी घटा दिया कि सरकार इस ओर कोई कदम उठाएगी। धीरे धीरे लोगों ने यह मान लिया कि भ्रष्टाचार तंत्र का ही एक हिस्सा है 

पर अब इस भ्र्ष्टाचार को खत्म करना है,,,इसके लीये केंद्र सरकार को ठोस  योजना बना कर हर ,,,शहर में लागू करनी होगी,,,,,,,एक खबर,,,,,,

रविवार, 23 जून 2019

चीन से मोदी सरकार ,,,अपनी जमीन,,,कब वापस लेगी ,,,?

विश्व,,,,,में भारत,,,की स्थिति,,,,4 थे स्थान पर मानी जा रही है ये सब गुजरे 5 साल में हुआ है केंद्र की मोदी सरकार की नीतियां ने देश को विश्व मे उच्च स्थान दिलवाया है ,,,,,,पर क्या 1962 में चीन ने हमसे जो जमीन,,,छीनी थी क्या आने वाले समय मे मोदी सरकार अपनी नीतियों से चीन से वो जमीन वापस लेगी,,,ये तो आने वाला समय बतायेगा आईये,,,, हम आपको इतिहास में ले चलते है,,,

,विनोद मेघवानी एक खबर

चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये। चीनी सेना दोनों मोर्चे में भारतीय बलों पर उन्नत साबित हुई और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया। चीन ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और साथ ही विवादित दो क्षेत्रों में से एक से अपनी वापसी की घोषणा भी की, हलाकिं अक्साई चिन से भारतीय पोस्ट और गश्ती दल हटा दिए गए थे, जो संघर्ष के अंत के बाद प्रत्यक्ष रूप से चीनी नियंत्रण में चला गया।
भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है। इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी। इस प्रकार की परिस्थिति ने दोनों पक्षों के लिए रसद और अन्य लोजिस्टिक समस्याएँ प्रस्तुत की। इस युद्ध में चीनी और भारतीय दोनों पक्ष द्वारा नौसेना या वायु सेना का उपयोग नहीं किया गया था।
स्थान
चीन और भारत के बीच एक लंबी सीमा है जो नेपाल और भूटान के द्वारा तीन अनुभागो में फैला हुआ है। यह सीमा हिमालय पर्वतों से लगी हुई है जो बर्मा एवं तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान (आधुनिक पाकिस्तान) तक फैली है। इस सीमा पर कई विवादित क्षेत्र अवस्थित हैं। पश्चिमी छोर में अक्साई चिन क्षेत्र है जो स्विट्जरलैंड के आकार का है। यह क्षेत्र चीनी स्वायत्त क्षेत्र झिंजियांग और
तिब्बत (जिसे चीन ने 1965 में एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित किया) के बीच स्थित है। पूर्वी सीमा पर बर्मा और भूटान के बीच वर्तमान भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश (पुराना नाम- नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) स्थित है। 1962 के संघर्ष में इन दोनों क्षेत्रों में चीनी सैनिक आ गए थे।
ज्यादातर लड़ाई ऊंचाई वाली जगह पर हुई थी। अक्साई चिन क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है और अरुणाचल प्रदेश एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसकी कई चोटियाँ 7000 मीटर से अधिक ऊँची है। सैन्य सिद्धांत के मुताबिक आम तौर पर एक हमलावर को सफल होने के लिए पैदल सैनिकों के 3:1 के अनुपात की संख्यात्मक श्रेष्ठता की आवश्यकता होती है। पहाड़ी युद्ध में यह अनुपात काफी ज्यादा होना चाहिए क्योंकि इलाके की भौगोलिक रचना दुसरे पक्ष को बचाव में मदद करती है। चीन इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था और चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था। दोनों पक्षों को ऊंचाई और ठंड की स्थिति से सैन्य और अन्य लोजिस्टिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और दोनों के कई सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से मर गए।
परिणाम
चीन द्वारा जबरन अधिकृत भारतीय भूमि
चीन
चीन के सरकारी सैन्य इतिहास के अनुसार, इस युद्ध से चीन ने अपने पश्चिमी सेक्टर की सीमा की रक्षा की नीति के लक्ष्यों को हासिल किया, क्योंकि चीन ने अक्साई चिन का वास्तविक नियंत्रण बनाए रखा। युद्ध के बाद भारत ने फॉरवर्ड नीति को त्याग दिया और वास्तविक नियंत्रण रेखा वास्तविक सीमाओं में परिवर्तित हो गयी।
जेम्स केल्विन के अनुसार, भले ही चीन ने एक सैन्य विजय पा ली परन्तु उसने अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि के मामले में खो दी। पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, को पहले से ही चीनी नजरिए, इरादों और कार्यों पर शक था। इन देशों ने चीन के लक्ष्यों को विश्व विजय के रूप में देखा और स्पष्ट रूप से यह माना की सीमा युद्ध में चीन हमलावर के रूप में था। चीन की अक्टूबर 1964 में प्रथम परमाणु हथियार परीक्षण करने और 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को समर्थन करने से कम्युनिस्टों के लक्ष्य तथा उद्देश्यों एवं पूरे पाकिस्तान में चीनी प्रभाव के अमेरिकी राय की पुष्टि हो जाती है।
भारत
युद्ध के बाद भारतीय सेना में व्यापक बदलाव आये और भविष्य में इसी तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहने की जरुरत महसूस की गई। युद्ध से भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर दबाव आया जिन्हें भारत पर चीनी हमले की आशंका में असफल रहने के लिए जिम्मेदार के रूप में देखा गया। भारतीयों में देशभक्ति की भारी लहर उठनी शुरू हो गयी और युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए कई स्मारक बनाये गए। यकीनन, मुख्य सबक जो भारत ने युद्ध से सीखा था वह है अपने ही देश को मजबूत बनाने की जरूरत और चीन के साथ नेहरू की "भाईचारे" वाली विदेश नीति से एक बदलाव की। भारत पर चीनी आक्रमण की आशंका को भाँपने की अक्षमता के कारण, प्रधानमंत्री नेहरू को चीन के साथ शांतिवादी संबंधों को बढ़ावा के लिए सरकारी अधिकारियों से कठोर आलोचना का सामना करना पड़ा। भारतीय राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने कहा कि नेहरू की सरकार अपरिष्कृत और तैयारी के बारे में लापरवाह थी। नेहरू ने स्वीकार किया कि भारतीय अपनी समझ की दुनिया में रह रहे थे। भारतीय नेताओं ने आक्रमणकारियों को वापस खदेड़ने पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की बजाय रक्षा मंत्रालय से कृष्ण मेनन को हटाने पर काफी प्रयास बिताया। भारतीय सेना कृष्ण मेनन के "कृपापात्र को अच्छी नियुक्ति" की नीतियों की वजह से विभाजित हो गयी थी और कुल मिलाकर 1962 का युद्ध भारतीयों द्वारा एक सैन्य पराजय और एक राजनीतिक आपदा के संयोजन के रूप में देखा गया। उपलब्ध विकल्पों पर गौर न करके बल्कि अमेरिकी सलाह के तहत भारत ने वायु सेना का उपयोग चीनी सैनिको को वापस खदेड़ने में नहीं किया। सीआईए (अमेरिकी गुप्तचर संस्था) ने बाद में कहा कि उस समय तिब्बत में न तो चीनी सैनिको के पास में पर्याप्त मात्रा में ईंधन थे और न ही काफी लम्बा रनवे था जिससे वे वायु सेना प्रभावी रूप से उपयोग करने में असमर्थ थे। अधिकाँश भारतीय चीन और उसके सैनिको को संदेह की दृष्टि से देखने लगे। कई भारतीय युद्ध को चीन के साथ एक लंबे समय से शांति स्थापित करने में भारत के प्रयास में एक विश्वासघात के रूप में देखने लगे। नेहरू द्वारा "हिन्दी-चीनी भाई, भाई" (जिसका अर्थ है "भारतीय और चीनी भाई हैं") शब्द के उपयोग पर भी सवाल शुरू हो गए। इस युद्ध ने नेहरू की इन आशाओं को खत्म कर दिया कि भारत और चीन एक मजबूत एशियाई ध्रुव बना सकते हैं जो शीत युद्ध गुट की महाशक्तियों के बढ़ते प्रभाव की प्रतिक्रिया होगी।
सेना के पूर्ण रूप से तैयार नहीं होने का सारा दोष रक्षा मंत्री मेनन पर आ गया, जिन्होंने अपने सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया ताकि नए मंत्री भारत के सैन्य आधुनिकीकरण को बढ़ावा दे सके। स्वदेशी स्रोतों और आत्मनिर्भरता के माध्यम से हथियारों की आपूर्ति की भारत की नीति को इस युद्ध ने पुख्ता किया। भारतीय सैन्य कमजोरी को महसूस करके पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी जिसकी परिणिति अंततः 1965 में भारत के साथ दूसरा युद्ध से हुआ। हालांकि, भारत ने युद्ध में भारत की अपूर्ण तैयारी के कारणों के लिए हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट का गठन किया था। परिणाम अनिर्णायक था, क्योंकि जीत के फैसले पर विभिन्न स्रोत विभाजित थे। कुछ सूत्रों का तर्क है कि चूंकि भारत ने पाकिस्तान से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, भारत स्पष्ट रूप से जीता था। लेकिन, दूसरों का तर्क था कि भारत को महत्वपूर्ण नुकसान उठाना पड़ा था और इसलिए, युद्ध का परिणाम अनिर्णायक था। दो साल बाद, 1967 में, चोल घटना के रूप में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच एक छोटी सीमा झड़प हुई। इस घटना में आठ चीनी सैनिकों और 4 भारतीय सैनिकों की जान गयी।
हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट
हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने युद्ध के तत्काल बाद ले. जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और इंडियन मिलिट्री एकेडमी के तत्कालीन कमानडेंट ब्रिगेडियर पी एस भगत के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी। दोनों सैन्य अधिकारियो द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को भारत सरकार अभी भी इसे गुप्त रिपोर्ट मानती है। दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए सैन्य अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया था।
एक खबर,,,,

मंगलवार, 18 जून 2019

सिंधी में शपथ ली लोकसभा,,,,में,,,शंकर लालवानी ने

*इंदौर सांसद शंकर लालवानी जी ने लोकसभा में सिंधी में शपथ लेकर इतिहास रचा*,,,,सिंधी समाज की संस्कृति और भाषा को,,,,बचाने की पहल शुरू की है शंकर लालवानी ने ,,,

मंगलवार, 11 जून 2019

Happiness,,,,,,,

आज में खुश हूं ,,,मेरी लाडली बेटी ,,,,मुस्कान,,, ने एक बेहतरीन लेख लिखा,,,जो इंग्लिश,,,में जो मुझे,,,नही,,,आती,,,पर उस लेख,,
,,,हैपिनेस,,, में जो उसने लिखा है,,,उसका मतलब बताया तो,,,में बहुत,,,खुश,,हुआ,,,में चाहता हूं,,,,,ये,,लेख,,,हैपिनेस,,, पड़कर,,,,दुनिया भी खुशी,,,महसूस करे,,,

,,, Happiness,,,,
[Have you ever noticed that there's an endless amount of things that can make you happy?
There is no shortage of people and experiences that bring out the best in you and make you feel most alive.
You know there are alot of  little little things that can make you happy its not always about the luxurious items instead of that there is many more little things that can make you really happy. All you need to do is figure out what are those little things that can make you really happy and can give you inner peace and inner Happiness.It can be listening a song it can be watching a movie it can be talking to your grandparents it can be sitting alone and enjoying your own company it can be going in a walk just with yourself and observing greenery and beautiful nature around you it can be playing with kids it can be going to shop and buying your favourite candies it can be playing with water  it can be wearing your favourite outfit it can be reading a book it can be going out with ur parents it can be dancing like crazy it can be singing loudly like noone is watching you it can be anything there are many more little little things like that
that can make you really really happy. All you need to do is find out what are those little things  that can make you feel really Happy.
Open yourself up let go a little more. Let life surprise you with its vastness.
~ By Muskan Meghwani

सोमवार, 10 जून 2019

आप से कोई रिश्वत मांगता है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से शिकायत करे

आप परेशान है की कोई भी अधिकारी आपका कार्य नही कर राहा ।आप से रिश्वत मांगी जा रही है आपके शहर का रोड सही नही है आप को पेंशन नही मिल रही है या आप अन्य परेशानियों है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से उसकी शिकायत करना चाहते है ,,,तो ये है दस एड्रेस प्रधानमंत्री जी के,,,
आप 10 तरीकों से कर सकते हैं पीएम मोदी से संपर्क कर सकते है*
पीएम नरेंद्र मोदी फेसबुक से लेकर ट्वीटर तक पर एक्टिव रहते हैं। आज हम बता रहे हैं ऐसे 10 तरीके जिनके जरिए आप पीएम मोदी तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं।
*- यदि आपके मन में कोई क्वेरी या सजेशन है तो आप www.pmindia.gov.in/en/interact-with-honble-pm/ पर लॉग इन कर सकते हैं और खुद को रजिस्टर कर सकते हैं। यह एक ऑफिशियल पोर्टल है, जिसे पीएम नरेंद्र मोदी से इंटरेक्ट करने के लिए डिजाइन किया गया है।*
*आप पीएम के ऑफिशियल एड्रेस पर उन्हें सीधे लेटर लिख सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएम मोदी को रोजाना 2 हजार से ज्यादा लेटर देशभर से मिलते हैं।*

*क्या है ऑफिशियल एड्रेस :* वेब इंफॉर्मेशन मैनेजर, साउथ ब्लॉक, रायसीना हिल
नईदिल्ली : 110011
फोन नंबर : 23012312
फैक्स : 23019545,23016857
*आप 'ऑनरेबल प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया, 7 रेसकोर्स रोड, नईदिल्ली' लिखकर भी लेटर पहुंचा सकते हैं।*
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*आइडिया शेयरिंग के लिए आप www.mygov.in पर जा सकते हैं। यहां सजेशन, आइडिया दे सकते हैं।*

*- आप RTI के जरिए भी पीएमओ से कोई प्रश्न पूछ सकते हैं।*

*- आप @PMOIndia या @Narendramodi पर ट्वीट करके भी सीधे अपनी बात पीएम तक पहुंचा सकते हैं। मोदी के ट्वीटर पर 16 मिलियन से ज्यादा फॉलोअर्स हैं।*

*- आप यू-ट्यूब के जरिए भी पीएम तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं। Narendra modi's Youtube Channel पर जाकर अपना मैसेज सेंड कर सकते हैं।*

*- Narendra modi Facebook Page या fb.com/pmoindia पर जाकर आप फेसबुक के जरिए भी पीएम तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं।*

- *narendramodi1234@gmail.com यह पीएम की ईमेल आईडी है। यह उनके एंड्रॉइड ऐप पेज से मिली है।*

- *इसके अलावा आप इंस्टाग्राम, लिंक्डइन पर भी पीएम से कॉन्टेक्ट कर सकते हैं। इंस्टाग्राम के लिए*

*https://www.instagram.com/narendramodi/ और लिंक्डइन के लिए https://in.linkedin.com/in/narendramodi पर जाएं।*

*- आप NaMo एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड करके भी पीएम मोदी तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं और उनसे जुड़े रह सकते हैं।*

एक खबर ,,,,विनोद मेघवानी

शनिवार, 8 जून 2019

जय श्री राम,,,के नारे ,,,,से ममता क्यों ,,भड़की,,

एक खबर,,,,,,,,

बोया बबूल तो आम कान्हा से होये,,,,,

ये बात बंगाल की मुख्यमंत्री,, ममता बेनर्जी ,,,पर सही बैठती है

पैतीस साल तक बंगाल में राज करने वाली,,वाम मोर्चे की सरकार ओर ज्योति बसु का राजनीतिक अंत ममता बनर्जी ने ही किया था,,,,,,जय श्री राम के नारे से बौखलाने वाली ममता बैनर्जी को अपना भविष्य,, अंधकार में दिख रहा ,,,है मोदी जी और अमित शाह की रण नीति ने उनकी सत्ता की जड़ों को खोखला करना शुरू कर दिया है
इसलिये ,,,वो बौखला गई है ,,,ममता जी की गुजरी ,,,जिंदगी के कुछ ,,अंश ,,,,

कांग्रेस से मतभेद और तृणमूल का गठन
अप्रैल 1996-97 में उन्होंने कांग्रेस पर बंगाल में सीपीएम की कठपुतली होने का आरोप लगाया और 1997 में कांग्रेस से अलग हो गईं. इसके अगले ही साल 1 जनवरी 1998 को उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बनाई. वह पार्टी की अध्यक्ष बनीं. 1998 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने 8 सीटों पर कब्‍जा किया.
पहला रेल बजट और मंत्री पद से इस्‍तीफा
साल 1999 में उनकी पार्टी बीजेपी के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार का हिस्सा बन गई. उन्हें रेल मंत्री बना दिया गया. 2002 में उन्होंने अपना पहला रेल बजट पेश किया और इसमें बंगाल को सबसे ज्यादा सुविधाएं दी, जिसको लेकर थोड़ा विवाद भी हुआ.
अपने पहले रेल बजट में ममता ने कहा कि रेल सुविधाओं से बांग्लादेश और नेपाल को भी जोड़ा जाएगा. लेकिन 2000 में पेट्रोलियम उत्पादों में बढ़ते मूल्य का विरोध करते हुए उन्होंने अपने सहायक अजित कुमार पांजा के साथ मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, बाद में उन्होंने बिना कोई कारण बताए इस्तीफा वापस भी ले लिया.
...और एनडीए से अलग हुई टीएमसी
साल 2001 की शुरुआत में 'तहलका खुलासों' के बाद ममता ने अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर लिया. लेकिन जनवरी 2004 में वे फिर से सरकार में शामिल हो गईं. 20 मई 2004 को आम चुनावों के बाद पार्टी की ओर से केवल वे ही चुनाव जीत सकीं. अब की बार उन्हें कोयला और खान मंत्री बनाया गया. 20 अक्टूबर 2005 को उन्होंने राज्य की बुद्धदेव भट्‍टाचार्य सरकार द्वारा औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों की उपजाऊ जमीनें हासिल किए जाने का विरोध किया.

नगर निगम में हुआ भारी नुकसान
ममता को 2005 में बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा. उनकी पार्टी ने कोलकाता नगर निगम पर से नियंत्रण खो दिया और उनकी मेयर ने अपनी पार्टी छोड़ दी. 2006 में विधानसभा चुनावों में भी तृणमूल कांग्रेस के आधे से अधिक विधायक चुनाव हार गए. नवंबर 2006 में ममता को सिंगूर में टाटा मोटर्स की प्रस्तावित कार परियोजना स्थल पर जाने से जबरन रोका गया. इसके विरोध में उनकी पार्टी ने धरना, प्रदर्शन और हड़ताल भी किया.
यूपीए से फिर जोड़ा नाता
साल 2009 के आम चुनावों से पहले ममता ने फिर एक बार यूपीए से नाता जोड़ लिया. इस गठबंधन को 26 सीटें मिलीं और ममता फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गईं. उन्हें दूसरी बार रेल मंत्री बना दिया गया. रेल मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल लोकलुभावन घोषणाओं और कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है. 2010 के नगरीय चुनावों में तृणमूल ने फिर एक बार कोलकाता नगर निगम पर कब्जा कर लिया.

बंगाल में वामपंथ का सफाया, TMC की बड़ी जीत
साल 2011 में टीएमसी ने 'मां, माटी, मानुष' के नारे के साथ विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ जीत हासिल की. ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं और 34 वर्षों तक राज्‍य की सत्ता पर काबि‍ज वामपंथी मोर्चे का सफाया हो गया. ममता की पार्टी ने राज्‍य विधानसभा की 294 सीटों में से 184 पर कब्‍जा किया.
तीन साल बाद UPA से तोड़ा नाता
केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर अपनी पैठ जमाने के बाद ममता ने 18 सितंबर 2012 को यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद नंदीग्राम में हिंसा की घटना हुई. सेज (स्पेशल इकोनॉमिक जोन) विकसित करने के लिए गांव वालों की जमीन ली जानी थी. माओवादियों के समर्थन से गांव वालों ने पुलिस कार्रवाई का प्रतिरोध किया, लेकिन गांव वालों और पुलिस बलों के हिंसक संघर्ष में 14 लोगों की मौत हो हुई.
ममता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री शिवराज पाटिल से कहा कि बंगाल में सीपीएम समर्थकों की हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाई जाए. बाद में जब राज्य सरकार ने परियोजना को समाप्त कर दिया, तब हिंसक विरोध भी थम गया. लेकिन इस दौरान केंद्र और कांग्रेस से उनके मतभेद शुरू हो गए.
ममता बनर्जी के सीएम बनने के बाद तृणमूल के दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया गया, लेकिन उन्हें भी ममता के दबाव के कारण अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी.
कविता और पेंटिंग भी...
ममता बनर्जी एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवयित्री और पेंटर भी हैं. '

एक खबर,,,,,विनोद मेघवानी

बंद कमरे में बनाए जाने वाले वीडियो से अंधी कमाई

Vinod raja meghwani (sampadak),,,, बन्द कमरे में बनाए जाने वाले वीडियो से  अंधी कमाई कितनी हे,,,?????