एक खबर,,,,,,,,
बोया बबूल तो आम कान्हा से होये,,,,,
ये बात बंगाल की मुख्यमंत्री,, ममता बेनर्जी ,,,पर सही बैठती है
पैतीस साल तक बंगाल में राज करने वाली,,वाम मोर्चे की सरकार ओर ज्योति बसु का राजनीतिक अंत ममता बनर्जी ने ही किया था,,,,,,जय श्री राम के नारे से बौखलाने वाली ममता बैनर्जी को अपना भविष्य,, अंधकार में दिख रहा ,,,है मोदी जी और अमित शाह की रण नीति ने उनकी सत्ता की जड़ों को खोखला करना शुरू कर दिया है
इसलिये ,,,वो बौखला गई है ,,,ममता जी की गुजरी ,,,जिंदगी के कुछ ,,अंश ,,,,
कांग्रेस से मतभेद और तृणमूल का गठन
अप्रैल 1996-97 में उन्होंने कांग्रेस पर बंगाल में सीपीएम की कठपुतली होने का आरोप लगाया और 1997 में कांग्रेस से अलग हो गईं. इसके अगले ही साल 1 जनवरी 1998 को उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बनाई. वह पार्टी की अध्यक्ष बनीं. 1998 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने 8 सीटों पर कब्जा किया.
पहला रेल बजट और मंत्री पद से इस्तीफा
साल 1999 में उनकी पार्टी बीजेपी के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार का हिस्सा बन गई. उन्हें रेल मंत्री बना दिया गया. 2002 में उन्होंने अपना पहला रेल बजट पेश किया और इसमें बंगाल को सबसे ज्यादा सुविधाएं दी, जिसको लेकर थोड़ा विवाद भी हुआ.
अपने पहले रेल बजट में ममता ने कहा कि रेल सुविधाओं से बांग्लादेश और नेपाल को भी जोड़ा जाएगा. लेकिन 2000 में पेट्रोलियम उत्पादों में बढ़ते मूल्य का विरोध करते हुए उन्होंने अपने सहायक अजित कुमार पांजा के साथ मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, बाद में उन्होंने बिना कोई कारण बताए इस्तीफा वापस भी ले लिया.
...और एनडीए से अलग हुई टीएमसी
साल 2001 की शुरुआत में 'तहलका खुलासों' के बाद ममता ने अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर लिया. लेकिन जनवरी 2004 में वे फिर से सरकार में शामिल हो गईं. 20 मई 2004 को आम चुनावों के बाद पार्टी की ओर से केवल वे ही चुनाव जीत सकीं. अब की बार उन्हें कोयला और खान मंत्री बनाया गया. 20 अक्टूबर 2005 को उन्होंने राज्य की बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार द्वारा औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों की उपजाऊ जमीनें हासिल किए जाने का विरोध किया.
नगर निगम में हुआ भारी नुकसान
ममता को 2005 में बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा. उनकी पार्टी ने कोलकाता नगर निगम पर से नियंत्रण खो दिया और उनकी मेयर ने अपनी पार्टी छोड़ दी. 2006 में विधानसभा चुनावों में भी तृणमूल कांग्रेस के आधे से अधिक विधायक चुनाव हार गए. नवंबर 2006 में ममता को सिंगूर में टाटा मोटर्स की प्रस्तावित कार परियोजना स्थल पर जाने से जबरन रोका गया. इसके विरोध में उनकी पार्टी ने धरना, प्रदर्शन और हड़ताल भी किया.
यूपीए से फिर जोड़ा नाता
साल 2009 के आम चुनावों से पहले ममता ने फिर एक बार यूपीए से नाता जोड़ लिया. इस गठबंधन को 26 सीटें मिलीं और ममता फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गईं. उन्हें दूसरी बार रेल मंत्री बना दिया गया. रेल मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल लोकलुभावन घोषणाओं और कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है. 2010 के नगरीय चुनावों में तृणमूल ने फिर एक बार कोलकाता नगर निगम पर कब्जा कर लिया.
बंगाल में वामपंथ का सफाया, TMC की बड़ी जीत
साल 2011 में टीएमसी ने 'मां, माटी, मानुष' के नारे के साथ विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ जीत हासिल की. ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं और 34 वर्षों तक राज्य की सत्ता पर काबिज वामपंथी मोर्चे का सफाया हो गया. ममता की पार्टी ने राज्य विधानसभा की 294 सीटों में से 184 पर कब्जा किया.
तीन साल बाद UPA से तोड़ा नाता
केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर अपनी पैठ जमाने के बाद ममता ने 18 सितंबर 2012 को यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद नंदीग्राम में हिंसा की घटना हुई. सेज (स्पेशल इकोनॉमिक जोन) विकसित करने के लिए गांव वालों की जमीन ली जानी थी. माओवादियों के समर्थन से गांव वालों ने पुलिस कार्रवाई का प्रतिरोध किया, लेकिन गांव वालों और पुलिस बलों के हिंसक संघर्ष में 14 लोगों की मौत हो हुई.
ममता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री शिवराज पाटिल से कहा कि बंगाल में सीपीएम समर्थकों की हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाई जाए. बाद में जब राज्य सरकार ने परियोजना को समाप्त कर दिया, तब हिंसक विरोध भी थम गया. लेकिन इस दौरान केंद्र और कांग्रेस से उनके मतभेद शुरू हो गए.
ममता बनर्जी के सीएम बनने के बाद तृणमूल के दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया गया, लेकिन उन्हें भी ममता के दबाव के कारण अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी.
कविता और पेंटिंग भी...
ममता बनर्जी एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवयित्री और पेंटर भी हैं. '
एक खबर,,,,,विनोद मेघवानी