*""अभिव्यक्ति की आजादी "*
*"" अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमे हमारा कानून देता है आप सार्वजनिक रूप से किसी भी मंच पर जनिहत अपने विचार प्रकट कर सकते है ,,,,,,,,एक खबर ,,,,,विनोद मेघवानी "*।
“किसी विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बेरोक-टोक
अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहलाती है।”
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है। किन्तु इसकी व्याख्या संविधान के इस अनुच्छेद में और न ही अन्यत्र उल्लिखित है। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बहुत व्यापक बना दिया है।
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ स्पष्ट करते हुए साकल पेपर्स (1962) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसमें शब्दों, लेखों, मुद्रणों, चिन्हों, प्रसारण या किसी अन्य प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना सम्मिलित है और वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी शामिल है।
रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विचारों के प्रसार की स्वतंत्रता शामिल है। प्रेस की स्वतंत्रता में सूचनाओं तथा समाचारों के जानने का अधिकार भी शामिल है। अनुच्छेद 19(1))(क) में चुप रहने का अधिकार भी शामिल है।
विजोइमैनुअल बनाम केरल राज्य (1986) के मामले में माननीय उच्चतम न्यायलय ने अवधारित किया था कि किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रगान गाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता यह उसके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत संरक्षित है ।
विभिन्न न्याय निर्णयों के माध्यम से माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकारों को शामिल किया है :
1)अनुच्छेद 19(1)(क) के अन्तर्गत किसी भी नागरिक को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-टेलीविजन, रेडियो द्वारा किसी घटना का आँखों देखा हाल प्रसारित करने का अधिकार है और सरकार उन्हें केवल अनुच्छेद 19(2) में वर्णित आधारों पर ही अनुमति देने से इन्कार कर सकती हैं।
(2) सरकारी कर्मचारियों का हड़ताल करने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(क) के अन्तर्गत अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं है, अतएव उच्चतम न्यायालय के अनुसार किसी भी व्यक्ति को हड़ताल करने से रोका जा सकता है।
(3) बन्द का अह्वान करना भी असंवैधानिक है और यह अनुच्छेद 19(1)(क) का भाग नहीं है। यह अनुच्छेद 21 का भी अतिलंघन करता है।
(4) अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत फिल्म बनाना और उसका प्रदर्शन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भाग है। किन्तु फिल्म अधिनियम 1952 की धारा 4, 5, 5-क और 5-ख के तहत प्रमाणन के लिए प्रमाणन बोर्ड द्वारा फिल्मों के प्रमाणन के लिए बनाया गया दिशा-निर्देश व मानक अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत युक्तियुक्त, निर्बन्धन है।
(5)वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त एक मूल अधिकार है, जो समस्त नागरिकों को प्राप्त है, लेकिन इसका उपयोग निर्बंधित किया जा सकेगा यदि अधिकार का प्रयोग भारत की प्रभुता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोकव्यवस्था, शिष्टाचार, सदाचार, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के उद्दीपन के लिये किया जाये।
भारतीय संविधान द्वारा प्रत्याभूत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण न होते हुए कुछ निर्बंधनों के अधीन है। शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए यदि ऐसा करना समीचीन प्रतीत होता है तो निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। यह स्वतंत्रता व्यापक अर्थ वाली है, जिसका अर्थान्वयन समय-समय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता रहा है।
देश के नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग निर्बंधनों के अधीन रहते हुए करें। क्यूंकि कहा गया है आपकी स्वतंत्रता वहीं तक है जहां तक किसी अन्य के अधिकार का हनन नहीं होता ।
*"" अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमे हमारा कानून देता है आप सार्वजनिक रूप से किसी भी मंच पर जनिहत अपने विचार प्रकट कर सकते है ,,,,,,,,एक खबर ,,,,,विनोद मेघवानी "*।
“किसी विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बेरोक-टोक
अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहलाती है।”
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है। किन्तु इसकी व्याख्या संविधान के इस अनुच्छेद में और न ही अन्यत्र उल्लिखित है। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बहुत व्यापक बना दिया है।
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ स्पष्ट करते हुए साकल पेपर्स (1962) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसमें शब्दों, लेखों, मुद्रणों, चिन्हों, प्रसारण या किसी अन्य प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना सम्मिलित है और वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी शामिल है।
रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विचारों के प्रसार की स्वतंत्रता शामिल है। प्रेस की स्वतंत्रता में सूचनाओं तथा समाचारों के जानने का अधिकार भी शामिल है। अनुच्छेद 19(1))(क) में चुप रहने का अधिकार भी शामिल है।
विजोइमैनुअल बनाम केरल राज्य (1986) के मामले में माननीय उच्चतम न्यायलय ने अवधारित किया था कि किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रगान गाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता यह उसके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत संरक्षित है ।
विभिन्न न्याय निर्णयों के माध्यम से माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत निम्नलिखित अधिकारों को शामिल किया है :
1)अनुच्छेद 19(1)(क) के अन्तर्गत किसी भी नागरिक को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-टेलीविजन, रेडियो द्वारा किसी घटना का आँखों देखा हाल प्रसारित करने का अधिकार है और सरकार उन्हें केवल अनुच्छेद 19(2) में वर्णित आधारों पर ही अनुमति देने से इन्कार कर सकती हैं।
(2) सरकारी कर्मचारियों का हड़ताल करने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(क) के अन्तर्गत अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं है, अतएव उच्चतम न्यायालय के अनुसार किसी भी व्यक्ति को हड़ताल करने से रोका जा सकता है।
(3) बन्द का अह्वान करना भी असंवैधानिक है और यह अनुच्छेद 19(1)(क) का भाग नहीं है। यह अनुच्छेद 21 का भी अतिलंघन करता है।
(4) अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत फिल्म बनाना और उसका प्रदर्शन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भाग है। किन्तु फिल्म अधिनियम 1952 की धारा 4, 5, 5-क और 5-ख के तहत प्रमाणन के लिए प्रमाणन बोर्ड द्वारा फिल्मों के प्रमाणन के लिए बनाया गया दिशा-निर्देश व मानक अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत युक्तियुक्त, निर्बन्धन है।
(5)वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त एक मूल अधिकार है, जो समस्त नागरिकों को प्राप्त है, लेकिन इसका उपयोग निर्बंधित किया जा सकेगा यदि अधिकार का प्रयोग भारत की प्रभुता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोकव्यवस्था, शिष्टाचार, सदाचार, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के उद्दीपन के लिये किया जाये।
भारतीय संविधान द्वारा प्रत्याभूत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण न होते हुए कुछ निर्बंधनों के अधीन है। शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए यदि ऐसा करना समीचीन प्रतीत होता है तो निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। यह स्वतंत्रता व्यापक अर्थ वाली है, जिसका अर्थान्वयन समय-समय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता रहा है।
देश के नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग निर्बंधनों के अधीन रहते हुए करें। क्यूंकि कहा गया है आपकी स्वतंत्रता वहीं तक है जहां तक किसी अन्य के अधिकार का हनन नहीं होता ।