मंगलवार, 22 अक्तूबर 2024

जम्मू कश्मीर विभाजन के बाद से ही विवादग्रस्त हे अब फिर आतंकी हमला =Vinod raja

Vinod raja meghwani (sampadak

जम्मू कश्मीर विभाजन के बाद से ही विवादग्रस्त हो गया था (एक खबर Vinod raja meghwani) पाकिस्तान के हुक्मरानों ने कश्मीर के कारण लाखों हिन्दुस्तानियों की जान ले ली और हिन्दुस्तान की अरबों की संपति को स्वाह कर दिया अब तक जब कश्मीर जल राहा था तब राज्य में नेशनल कांफ्रेंस के अब्दुल्ला परिवार की सरकार थी आतंकवाद ने पूरे राज्य को 75 सालो से बर्बाद कर दिया । जब कश्मीर से हिंदुओं को पलायन करने पर मजबूर किया गया तब भी अब्दुल्ला और मुफ्ती मोहमद का राज था कश्मीर में ।370 हटाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवाद पे काबू किया गया और अब फिर नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने हे ओर फिर आतंकवाद की घटना होने लगी।
अब्दुल्ला सरकार के शासन में ही कश्मीर घाटी में आतंकवाद बढ़ा अब फिर शासन की कमान इसी खानदान के पास है।
आतंकी हमले में एक डॉक्टर सहित सात मजदूरों की मौत। इनमें से चार मुसलमान।
आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता।
20 अक्टूबर की शाम को कश्मीर घाटी के गांदखल इलाके के एक प्रवासी मजदूर कैंप पर आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग की। इस फायरिंग में एक डॉक्टर सहित सात मजदूरों की मौत हो गई तथा अनेक मजदूर घायल हो गए। इन सात मृतकों में से चार मुसलमान है। इसकी आतंकी हमले की जिम्मेदारी लश्कर ए तैयबा ने ली है। 15 अक्टूबर को ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। उमर  अब्दुल्ला   उसी अब्दुल्ला खानदान के चिराग है, जिनके शासन में कश्मीर घाटी में आतंकवाद बढ़ा। अनुच्छेद 370 के लागू रहते जम्मू कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी पूरी तरह आतंकियों के गिरफ्त में थी। वर्ष 2019 में 370 के समाप्त होने के बाद हालातों में सुधार हुआ। लेकिन इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि कश्मीरियों ने उसी अब्दुल्ला खानदान को सत्ता सौंप दी जिन के शासन में आतंकवाद पनपा। गंभीर बात तो यह है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला 370 की बहाली के पक्ष में है। शपथ लेने के बाद चार दिन बाद ही जब इतना बड़ा हमला हो गया, तब 370 की बहाली के बाद के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह सही है कि मौजूदा समय में जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन शासन में निर्वाचित सरकार का भी महत्व होता है। 2019 के बाद जो आतंकवाद दम तोड़ने की स्थिति में पहुंच गया था उसे उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने से संजीवनी मिल गई है। कोई माने या नहीं, लेकिन अब्दुल्ला खानदान के पास फिर से शासन आने के कारण आतंकियों के हौसले बुलंद हुए हैं। कुछ लोग हा ही के विधानसभा चुनाव को भले ही लोकतंत्र को मजबूत होना बताए, लेकिन कश्मीर के हालात दोबारा से बिगड़ने की शुरुआत हो गई है। इतिहास गवाह है कि अब्दुल्ला खानदान की सरकारों में ही कश्मीर घाटी से चार लाख हिंदुओं को भागना पड़ा। लाख कोशिश के बाद भी हिंदुओं को फिर से घाटी में बसाने में सफलता नहीं मिली है। केंद्र सरकार की ओर से विकास के जो दावे किए जा रहे है, वे भी विधानसभा चुनाव में कश्मीर घाटी में कोई असर नहीं दिखा पाए हैं। कश्मीरी मुसलमानों ने उसी नेशनल कॉन्फ्रेंस को वोट दिया जिसने अनुच्छेद 370 की बहाली का वादा किया है। 20 अक्टूबर को हुए हमले में मृतकों में चार मुसलमान भी है। इससे जाहिर है कि आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता। मृतक मजदूर बिहार के हैं, जो कश्मीर में विकास के निर्माण कार्य कर रहे थे। यानी आतंकियों को विकास भी पसंद नहीं है। देखना होगा कि उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के बाद जम्मू कश्मीर में जो हालात उत्पन्न हुए हैं। उनसे केंद्र सरकार किस प्रकार मुकाबला करती है।

एक खबर ये इंटरव्यू ,,,नहीं न्यूटल बम हे ,,,,,जो बिश्नोई ने दिवाली में फोड़ा हे,,,,😀

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