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स्वामी हरिगिरि वर्सी महोत्सव आज से

Vinod meghwani,,,,,,एक खबर 


*स्वामी हरिगिर महाराज का 53 वां वर्सी महोत्सव आज से*

*वसण शाह दरबार से साईं ओमी राम द्वारा रायपुर स्वामी हरिगिर महाराज वर्सी में सत्संग प्रवचन*

रायपुर। स्वामी हरिगिर महाराज का 53वां वर्सी महोत्सव आज दिनांक 20 अगस्त से शताब्दी नगर तेलीबांधा में स्थित स्वामी हरिगिर महाराज धर्मशाला जय शक्ति धाम समिति में साईं आनंदगिर  महाराज बाबा झंगल दास वाधवा  परिवार के सानिध्य में बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाया जायेगा। तीन दिवसीय वर्सी महोत्सव का प्रारंभ आज दिनांक 20अगस्त दिन शुक्रवार (प्रथम दिवस) को प्रातः 9 बजे दुर्गा माता पाठ आरंभ प्रातः 11 बजे अखण्ड पाठ साहेब आरंभ *(अम्मा मीरा देवी दरबार के साथ सानिध्य में भाई गोविंद सिंह द्वारा)* दोपहर 1:00 बजे स्वामी हरि गिरि महाराज धर्मशाला प्रवेश उद्घाटन एवं ब्राह्मण भोजन( महंत श्री अनंत पुरी गोस्वामी जी वर्तमान 24 वे पीठाधीश्वर श्री दुर्गा मंदिर लिली चौक रायपुर एवं श्री अजित कुकरेजा पार्षद एवं एमआईसी सदस्य के सानिध्य में) दोपहर 2:00 भंडारा 4:00 बजे स्वामी हरि गिरि महाराज की स्मृति बाबा रात्रि 7:00 बजे दुर्गा माता मंदिर मैं आरती रात्रि 7:30 बजे पाठ साहेब आरती एवं कीर्तन भाई गोबिंद सिंह द्वारा रात्रि 8:00 बजे भजन एवं प्रवचन संध्या (साईं ओमी  राम साहेब साईं वसण दरबार उल्हासनगर)

द्वितीय दिवस 21अगस्त दिन शनिवार :-
प्रातः 8.30 बजे - दुर्गा माता मंदिर में आरती प्रातः 9 बजे - पाठ साहेब आरती 
शाम 7 बजे - दुर्गा माता मंदिर में आरती 
रात्रि 7.30 बजे - पाठ साहेब आरती एवं कीर्तन (*भाई गोबिंद सिंह द्वारा*)
रात्रि 8 बजे - भजन एवं प्रवचन संध्या 
(*साईं लाल दास जीं झूले लाल मंदिर चक्करभाँटा* )

वर्सी महोत्सव के तृतीय दिवस 22-8-2021 दिन रविवार (रक्षाबंधन )प्रातः 8.30 बजे - दुर्गा माता मंदिर में आरती प्रातः 9 बजे - दुर्गा माता पाठ समापन एवं हवन प्रातः 10 बजे -शोभा यात्रा तेलीबांधा से पूज्य समाधी साहेब तक प्रातः 11 बजे - समाधि साहेब पूजा अर्चना एवं बच्चों का मुंडन संस्कार प्रातः 12 बजे - अखंड पाठ भोग साहेब (*साईं युधिष्ठिर लाल शदाणी  दरबार तीर्थ के सानिध्य में भाई गोविंद सिंह द्वारा*)
  जय शक्ति धाम समिति के कोषाध्यक्ष सीए  चेतन तारवानी  ने बताया कि भारत के काने कोने से स्वामी हरिगिर महाराज जी के श्रध्दालुगण पधार रहे हैं मुख्य रुप से कल्याण मुंबई बड़ोदरा अहमदाबाद आनंद भुसावल खंडवा जालाना भेपाल बालाघाट, सुरत, बुरहानपुर, विदिशा नागपुर, बिलासपुर, इन्दौर, ग्वालियर, जलगांव, कवर्धा, गोंदिया, दिल्ली, वाशीम अकोला अमरावती मुंगेली चंद्रपुर 
भिलाई, कटनी एवं रायपुर शहर से अनेकों श्रध्दालुगण शरीक होंगे। 
संस्था के कोषाध्यक्ष चेतन तारवानी ने बताया कि विभिन्न शहरों से पधारने वाले श्रध्दालुओं के लिए लोकेशन से लाने एवं रहने खाने उचित प्रबंध कर लिए गये है तथा समिति के अध्यक्ष मोहन लाल तेजवानी एव अन्य सदस्य श्रध्दालुओ के स्वागत में जुटे है।
 स्वामी हरिगिर महाराज बचपन से ही धार्मिक एवं कोमल भावनाओं के कारण युवा अवस्था में अपने मातहत का आकस्मिक मौत से द्रवीभुत होकर सन् 1930 में भरा पुरा परिवार छोड घर से निकल पडे जिसमें उनके 3 पुत्र एवं 3 पुत्रियाँ थी सन्यास आश्रम की ओर मुडने पर उनकी मुलाकात पंजाब के माता उपासक श्री शिवगिरी महाराज से हुई जहाँ उन्होंने दीक्षा लेने की ईच्छा प्रकट की जहाँ उन्हें कुछ परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, जिसमें अपने ही घर से भिक्षा मॉगना था, संतुष्ट होकर श्री गुरू शिवगिरी महाराज ने अपना शिष्य बनाना स्वीकार किया एवं दीक्षा प्रदान की, दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् अपने गुरू की सेवा करते रहे एवं देश के विभिन्न भागों में विचरण करते हुए सन् 1951 में श्री शिवगिरी महाराज उज्जैन में ब्रम्हलीन हुए जिनकी समाधि उज्जैन रेल्वे स्टेशन के समीप स्थित है, गुरू शिवगिरी के ब्रम्हलीन होने के पश्चात् स्वामी हरिगिर महाराज को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया। नई जिम्मेदारियों का वहन करते हुए देश के विभिन्न भागों में विचरण करते हुए माता की महिमा एवं गुरु का संदेश फैलाते रहे।
इस दौरान 1954 में उनका पडाव रायपुर शहर तेलीपाराा स्थित छोटी सी कुटिया में अपना जीवन व्यतित कर माता की सेवा करते हुए कई असाध्य रोगियों को जीवन दान चमत्कारिक रुप से दिया। सन्यास के दौरान प्रकृति प्रेम के कारण अनेक जडी बुटियों को खोज कर उनके द्वारा निर्मित दवाइयों से जनसेवा करते रहे जिसे उन्होने भरण पोषण का साधन नहीं माना भरण पोषण के लिए अपने द्वारा निर्मित स्नो एवं नेलपॉलिश का व्यवसाय करते थे। शेष समय माता की सेवा एवं पुजा एवं आयुर्वेद द्वारा मानव सेवा में लगे रहते थे। इस दौरान सन् 1955 में उनके परिवार वालों को बाबा के रायपुर में होने का समाचार मिला वे तुरंत मिलने रायपुर आये एवं वापस घर चलने का आग्रह करते रहे परन्तु बाबा पुनः किसी प्रकार के मोहमाया के बंधन से अपने को अलग रखा । दुसरे पुत्र श्री झंगलदास वाधवा को अपना शिष्य बनाने हेतु राजी हुए
तथा उनका नामकरण बालकगिर के रुप में किया।
दिनांक 08.08.1968 राखी के पर्व के दिन पुजा पाठ से निवृत होकर सभी स्नेह जनों से अंतिम मुलाकात कर दोपहर समाधि में उन्होने अपने आपको प्रचार से दुर रखा अन्तिम यात्रा में भी करिश्मा दिखाया जहां रायपुर के जाने माने फोटो स्टुडियो सेंट्रल फोटो स्टुडियो के फोटोग्राफर द्वारा बाबाजी के लिए गए फोटो में एक भी फोटो नहीं आना आश्चर्य एवं खेद का विषय रहा अन्तिम यात्रा तेलीबांधा शमशन घाट पर पहुचने के पश्चात् समाधि स्थल में उनकी आंखें खुलने एवं इधर उधर देखने के पश्चात् बंद होने का चमत्कार भी दर्शनार्थियोंने देखा।
ब्रम्हलीन होने के पश्चात् उनके पुत्र बाबा झंगलदास दीक्षा के पश्चात् बालक गिर के रुप में अपने गुरु की वर्सी मनाते रहे हैं।


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