कोरोनो के चलते डॉ ओर हॉस्पिटल वालों की लॉटरी लग गई ऐसा अवसर मिला की इंसानियत को ताक पर रखकर मनमाने बिल थमाये है जनता को जब लोग कहते इतना बिल तो हॉस्पिटल कहते है हम तो सरकार के निर्देशानुसार ही फीस ले रहे है पर
सरकार की ओर से मरीज की कंडीशन के हिसाब से पैकेज तय किया गया था, इसके बावजूद कुछ अस्पतालों ने ज्यादा पैसा वसूला
सरकार की ओर से मरीज की कंडीशन के हिसाब से पैकेज तय किया गया था, इसके बावजूद कुछ अस्पतालों ने मनमाना पैसा वसूला।
बिल बढ़ाने डॉक्टर-स्टाफ के पीपीई किट और मास्क के पैसे भी हर मरीज से वसूले
मरीज को उसी अस्पताल में एक बार देखने की कंसल्टेशन फीस भी पांच-पांच हजार ली
रिकार्ड में 27 शिकायतें ही, जबकि हजारों ने चुपचाप अदा कर दिया लाखों का बिल
कोरोना की दूसरी लहर में रायपुर समेत कई जिलों के निजी अस्पतालों ने इलाज के नाम पर मरीजों से अनाप-शनाप पैसे वसूले। सरकार के इलाज पैकेज में रास्ता निकालकर भारी-भरकम बिल बनाए गए। तर्क दिया गया- हाई एंड मेडिसिन और दूसरे संसाधनों के हिसाब से बिल बनाया गया। कोरोना अप्रैल और मई के महीने में बड़ी आफत बनकर टूटा।
5 अप्रैल के बाद तो स्थिति ये हो गई कि रायपुर सहित राज्य के ज्यादातर शहरों में अस्पताल फुल हो गए। आईसीयू और ऑक्सीजन वाले बेड के लिए तीन-तीन, चार-चार दिन की वेटिंग दे दी गई। पर मरीजों की कंडीशन देखकर परिजन किसी भी स्थिति में अस्पताल में भर्ती करवाने को तैयार थे। कुछ अस्पतालों ने इसी मजबूरी का फायदा उठाया और दोगुना-तिगुना पैसा वसूल लिया।
सरकार ने हालांकि मरीजों के लिए पैकेज तय कर दिए और स्पष्ट चेतावनी दी गई कि शासन से निर्धारित पैकेज से अतिरिक्त शुल्क न वसूला जाए। इसके बावजूद कुछ अस्पतालों ने मनमाना पैसा वसूला। सरकार की ओर से जारी गाइड लाइन में अस्पताल की केटेगरी के साथ मरीज की कंडीशन के हिसाब से पैकेज तय किया गया था।
यानी सामान्य मरीज जिसे न तो आईसीयू की जरूरत है और न ही ऑक्सीजन बेड की, ऐसे मरीज के लिए रोज के हिसाब से अलग पैकेज था। ऑक्सीजन बेड और वेंटिलेटर पर जिन मरीजों को रखना पड़ा, उनके लिए भी रोज के हिसाब से अलग पैकेज तय किया गया था। इसके बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने मनमानी की। सबसे ज्यादा पैसे उन मरीजों से वसूले गए, जिन्हें वेंटिलेटर या आईसीयू में ऑक्सीजन सपाेर्ट सिस्टम पर रखा गया था। इस कंडीशन वाले मरीजों के परिजनों के सामने डाक्टरों की बातें मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, इस वजह से उन्होंने जैसा कहा और जितने बिल बनाया गया, उतना जमा कर दिया। *"आप लेपटॉप सस्ता खरीदना चाहते इस लिंक पर जाये "* https://amzn.to/3ikScZt
25 अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई
रायपुर की सीएमएचओ डॉ. मीरा बघेल ने कहा कि सरकार ने जो दरें निर्धारित की हैं उसी हिसाब से पैसे लेने को कहा गया है। अब तक 25 अस्पतालों के खिलाफ शिकायतें आईं, जिसमें पैसे वापस करवाए गए हैं। एक अस्पताल से तो 12 लाख रुपए वापस दिलवाए गए।
सबसे ज्यादा शिकायत बांठिया अस्पताल के खिलाफ, 10 से 12 लाख वापस कराए
रायपुर के सीएमएचओ कार्यालय में सबसे ज्यादा शिकायतें बांठिया अस्पताल के खिलाफ की गई। इस कार्यालय के माध्यम से 5 मरीजों के 10 से 12 लाख वापस भी कराए गए। ज्यादा पैसे वसूलने वाले अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग ने कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की। यही नहीं, वे दबी जुबान में नोडल अफसरों के सैटलमेंट करवाने के फैसलों की भी हिमायत कर रहे हैं. उनका तर्क है कि एक्शन लेते तो कुछ नहीं मिलता, सैटलमेंट से मरीज के पैसे तो वापस हुए।
एनएबीएच वाले अस्पताल नहीं करते एक्स्ट्रा बिलिंग
सीएमएचओ कार्यालय का दावा है कि एनएबीएच (नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स) मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों से अतिरिक्त बिलिंग की शिकायत नहीं आई है। चूंकि ये कॉर्पोरेट या बड़े अस्पताल होते हैं, इसलिए इसमें किसी को व्यक्तिगत फायदा नहीं होता। राजधानी में 5 से 6 बड़े अस्पताल एनएबीएच मान्यता प्राप्त है, जहां से अतिरिक्त बिलिंग की शिकायत नहीं आई है।
अस्पतालों का दावा- पैकेज से ही बिलिंग
मरीज के परिजनाें से पैकेज के अनुसार ही बिल लिया। हमने इलाज में कोई कमी नहीं की, यह बात अलग है कि मरीज को बचाया नहीं जा सका। - डाॅ. रूपेश अग्रवाल, डायरेक्टर, बीएम शाह अस्पताल
ऐसे 7-8 मरीजों के पैसे लौटाए गए हैं, जिनका बिल अतिरिक्त बन गया था। एक मरीज पूरा पैसा वापस चाह रहे थे, जो संभव नहीं हो सकता। - डॉ. राजेंद्र बांठिया, संचालक बांठिया अस्पताल
पैकेज के अनुसार बिल लिया है। गंभीर मरीज को हाई एंड मेडिसिन दी गई होंगी। ज्यादा पैसे वसूलने जैसी कोई बात नहीं है। - डॉ. सुनील खेमका, डायरेक्टरश्री नारायणा अस्पताल
भास्कर सरोकार; नियमों का सख्ती से पालन कराए सरकार
कोरोना संक्रमण के दौरान डाक्टरों और चिकित्सा से जुड़े लोगों ने जो सेवा की, उससे पूरा राष्ट्र अभिभूत है। उनसे जो उम्मीद थी, उनपर वे खरे उतरे। यही उम्मीदें चिकित्सा से जुड़े प्राइवेट सेक्टर से भी लगाई गई थीं। उस बुरे दौर में संवेदनशीलता बड़ा मल्हम हो सकती थी। लेकिन हर मामले में ऐसा नहीं हुआ। गड़बड़ी हो सकती है, इस अंदेशे से सरकार ने कोरोना के इलाज के मामले में निजी अस्पतालों के भारी-भरकम बिलों को पैकेज तय करके बांधने की कोशिश की। लेकिन दाएं-बाएं से रास्ते निकालकर ज्यादातर मरीजों को तय पैकेज से दो-तीन गुना बिल थमा दिए।
शिकायतें तो इक्का-दुक्का हुईं, ऐसे हजारों लोग हैं जिन्होंने खामोशी से बिल अदा किए, भले ही इसके लिए कर्ज लिया या प्रापर्टी बिगाड़ ली। अब तीसरी लहर की बातें चल रही हैं। ऐसे में सरकार को ऐसे तमाम रास्ते बंद करना चाहिए, जिनके जरिए निजी अस्पताल भारी-भरकम बिल बना पाते हैं। कोरोना वैसे ही परिवार पर कहर बनकर टूट रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि कम से कम इन परिवारों को लग रही आर्थिक चोट पर मलहम तो लगाए। ऐसे अस्पतालों का सरकार को सख्ती से नियम पालन कराना चाहिए।
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