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सिंध प्रान्त बनाये केंद्र सरकार

 अंडमान निकोबार को ,,,,, सिंध प्रांत बनाया जाए  ,,,,,                         विशेष खबर।               एक खबर (vinod meghwani )सिन्धी साहित्य और सिन्धी संस्कृति को जीवित रखने के लिए अंडमान निकोबार को ,,,सिंधु प्रान्त  का नाम दिया जाना चाहिये ।अंडमान और निकोबार भारत का एक संघशासित/केंद्रशासित प्रदेश है, जिसकी राजधानी साउथ अंडमान में स्थित ‘पोर्ट ब्लेयर’ है, जोकि भारत के प्रमुख पत्तनों में से एक हैं|इस द्वीपसमूह में भूमध्यरेखीय या विषुवतीय प्रकार की जलवायु व वनस्पति पायी जाती है और संवहनीय वर्षा होती है| सघन सदाबहार वन, प्रकृतिक सुंदरता और जनजातीय जनसंख्या व संस्कृति यहाँ की पहचान है|सिन्धी समाज के साथ विभाजन के समय से राजनीतिक दलों ने अन्याय किया उनसे पूछे बिना ही सिंध प्रांत को पाकिस्तान को दे दिया गया । और विभाजन के समय सिन्धी समाज के लीये प्रान्त न बनाकर उनके साथ अन्याय हुआ ।

सिंध प्रांत न बनाने की ऐतिहासिक भूल को1956 में भी ठीक किया जा सकता था जब राज्यों का पुर्नगठन हो रहा था । तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चाहते थे की प्रान्तों का गठन एक प्रशासनिक इकाई की तरह हो , न की भाषाई आधार पर। लेकिन उनकी इच्छा के विपरीत राज्यो की सरहदे भाषाओ की बिना पर ही खिंची ।इसने सिंधी भाषा के लिए हमेशा के लिए एक मुश्किल खड़ी कर दी ।जहाँ दूसरी भाषाओ को राज्य का सहारा मिला वही संस्कृत और उर्दू के अलावा सिंधी तीसरी ऐसी भाषा बनी जो संविधान के आठवें शेड्यूल में तो तो थी पर उसका कोई राज्य नहीं था । उस वक्त देश भर में बिखरे सिंधियों के लिए अपने राज्य के लिये आंदोलन करने से ज्यादा जरूरी था जिन्दा बचे रहना ।इसलिये छिटपुट मांगे उठती रही, पर कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ। अपने लिए अलग राज्य की मांग अब सिंधी नेता अक्सर उठाते हैं पर किसी राज्य से जमीन लेकर नया सिंध बनाना एक ऐसा बवाल है जिसमें कई शान्तिप्रिय सूफीवादी सिंधी नहीं पड़ना चाहते ।इसलिए कुछ सिंधी नेता ‘लैंडलेस स्टेट’ की माँग करते हैं। उनका तर्क है कि जब भारत सरकार ‘तिब्बत गवर्नमेंट इन एक्साइल’ की अनुमति दे सकती है तो सिंधी तो भारत माता के सपूत हैं । फार्मूला कोई भी हो ।अलग सिंध प्रान्त न सिर्फ सिंधियों के लिये बल्कि सभी देशवासियों के लिए गर्व का विषय होगा , क्योंकि सिंध के बगैर हमारा राष्ट्र गान अधूरा है। जैसा कि बिहार के हेमंत सिंह अपनी किताब ‘आओ हिंद में सिंध बनायें’ में लिखते हैं, ‘‘हमें कच्छ के निकट समुद्र से कुछ जमीन रिक्लेम कर सिंध बनाना चाहिए जो न सिर्फ सिंधी संस्कृति का केन्द्र हो, बल्कि एक बंदरगाह और बड़ा व्यापार केन्द्र भी हो। यह हमारे राष्ट्र गान में आ रहे सिंध शब्द का सम्मान होगा और राष्ट्र गान पूरा होगा।’’सिंधियों के राजनीतिक पुर्नस्थापन के लिये एक और फार्मूला जो सिंधी काउसिंल आफ इण्डिया ने अपनी माँगों में रखा, वह है संविधान संशोधन के जरिये लोकसभा में 14, राज्य सभा मे 7 और अलग-अलग विधानसभाओं में 5 से लगा कर 15 सीटों तक सिंधियों के लिए आरक्षित करना ताकि राज्य न होने की भरपाई की जा सके।


राज्य न होने का सबसे बड़ा नुकसान सिंधी भाषा संस्कृति ने भुगता है । फारसी और अंग्रेजी ने यह साबित किया है कि भाषा के विकास मे राज्य की भुमिका महत्वपूर्ण है । हालांकि भारत सरकार ने 1968 में सिंधी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर इस नुकसान की कुछ भरपाई की है। पर यह काफी नहीं है। सिंधी इतिहासकार मोहन गेहानी कहते हैं कि सरकार कम से कम इतना तो करती कि भारत भवन की तर्ज पर एक बड़ा सांस्कृतिक केन्द्र बनवा देती, जहाँ सिंधियों की 5000 साल पुरानी संस्कृति और कलाओं के संवर्धन का काम हो सकता। या फिर सिंधीयो को भाषाई अल्पसंख्यक मानते हुए सरकार उनके हितो की रक्षा कर सकती थी परन्तु राजनीतिक इच्छाशक्ति के आभाव में ऐसा हो न सको जबकि हमारा संविधान भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों मे कोई भेद भाव नही करता ।सिंध प्रांत बनने से अल्पसंख्यक सिन्धी समाज के साथ 70 साल बाद न्याय होगा । एक खबर विनोद मेघवानी । निवेदन इस पोस्ट को इतना शेयर करे जब तक सिंध प्रांत की घोषणा न हो जाये ।


टिप्पणियाँ

  1. साधुवाद प्रथम आपको कि आपके द्वारा जानकारी प्राप्त हुई।
    और सिंधी गौरव सांसद श्रीमान शंकर लालवानी जी को जिन्होंने संसद में सिंधी भाषा का मान badhaya.

    जवाब देंहटाएं
  2. साधुवाद प्रथम आपको कि आपके द्वारा जानकारी प्राप्त हुई।
    और सिंधी गौरव सांसद श्रीमान शंकर लालवानी जी को जिन्होंने संसद में सिंधी भाषा का मान badhaya.

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  3. साधुवाद प्रथम आपको कि आपके द्वारा जानकारी प्राप्त हुई।
    और सिंधी गौरव सांसद श्रीमान शंकर लालवानी जी को जिन्होंने संसद में सिंधी भाषा का मान badhaya.

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  4. साधूवाद प्रथम आप को ।
    जानकारी प्राप्त हुई।
    दर असल में शुरुवाती हालातों के समय सिंधी प्रजा अपने को भारत में आर्थिक नींव मज़बूत करने को व्यस्त रही।
    समय गुजरता गया हमारी पहचान भाषा , संस्कृति, उत्सव, खान-पान ,उथणी विहणी हाथों से निकलती गई। सरकार श्री का कर्तव्य बनता है। हमें सिंधु पटे में सहुलियत मुहैया करवाये। यह मांग एक वास्तविक है। जिस से सिंधी प्रजा भाषाई बहूमत वातावरण में अपनी मांग को सही रूप में जामा पहना सकेगी।
    यही एक रास्ता है ।
    लि,,
    कीमत राय मोटवाणी
    अहमदाबाद

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