कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा नुकसान सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का हुआ है लगभग 15 लाख लोग संक्रमित है कोरोना से ओर लगभग 1 लाख लोग इस अघोषित युद्ध मे शहीद हो चुके है । कोरोना से शहीद आप सोच में क्यो पड़ गये । आपको जानकारी दे दे । वाइट् हाउस अमेरिका राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस वायरस को जैविक ,,,हथियार मानते है । ट्रंप का कहना है वुहान की चीनी लेब में इस,, वायरस को बनाया गया है जिसका सबूत उनके पास है और समय आने पर इसे दुनिया के सामने रखेंगे । पर एक बात तो तय है कि अमेरिका चीन से बदला लेगा । अगर अमेरिका चीन से बदला लेगा तो स्वाभिक उसे सबसे पहले भारत को अपना सच्चा मित्र बनाना होगा । और अमेरिका इस दिशा में आगे बढ़ राहा इस बात को चीन समझ राहा है । इसलिए चीन लदाख ओर अन्य विवादित सीमाओं पर भारत के सैनिकों को भड़काने का प्रयास कर राहा है और साथ ही अपने पास के देशों को अपने कर्ज जाल में कैसे फंसा राहा है और भारत के खिलाफ भड़का राहा है
चीन की रणनीति
हिन्द महासागर क्षेत्र तथा एशिया के तटीय देशों का समूह लगातार चीन की ताकत को बढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहा है. इनमें जो कमज़ोर देश हैं, उनके लिए चीन की मदद और उससे आसान शर्तों पर मिलने वाले क़र्ज के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण की लुभावनी पेशकश से बच पाना मुश्किल है.।
ये उच्च स्तरीय "कर्ज़ आधारित कूटनीति" है और इस मामले में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में कोई भी देश चीन की बराबरी नहीं कर सकता. यहां तक कि जापान और भारत भी नहीं.।
एक रास्ता तो श्रीलंका ने श्रीलंका ने हम्बनटोटा बंदरगाह को लेकर तलाश किया है. उच्च लागत वाली परियोजना के कारण पैदा होने वाली परेशानियां दूर करने के लिए उसने कर्ज़ चुकाया और चीन की कम्पनी के साथ 99 वर्षों का पट्टा समाप्त कर दिया.।
मालदीव को लेकर भारत और चीन में होड़ क्यों है?
मोदी राज में कितनी मजबूत हुई भारतीय सेना?।
ये सबक महत्त्वपूर्ण है और इसे जल्द अपनाया भी गया. इसका अनुसरण करते हुए म्यांमार, मलेशिया और थाईलैंड ने चीन के कर्ज़ से चलनेवाली परियोजनाएं या तो समाप्त कर दी हैं या फिर कम कर दी हैं. यहां तक कि पाकिस्तान में, जो संभावित चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर को अपने लिए महत्वपूर्ण मान रहा था, ज़्यादा से ज़्यादा लोग उस कर्ज़ को सशंकित रूप से देख रहे हैं, जिसमें उनका देश फंस सकता है.।
अपना प्रभुत्व जमाने के लिए चीन आर्थिक के अलावा सामरिक उद्देश्यों की पूर्ति पर भी ध्यान देता है जिसे चीन के मास्टरमाइंड "मलक्का डिलेमा" कहते हैं.।
हिन्द महासागर के रास्ते होने वाले उसके 80% व्यापार की सुरक्षा आवश्यक है. यह रास्ता मलक्का, लम्बोक और सुन्डा जलडमरूमध्यों के "चेकप्वाइंट्स" से होकर जाता है. इसे देश के पूर्वी तटों पर और अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में स्थित भारतीय नौसेना का एकीकृत कमांड प्रभावशाली तरीके से नियंत्रित करता है।
ऐसे में चीन का बंदरगाहों और समुद्री ठिकानों की तलाश में लगे रहना जगज़ाहिर है. यह समस्या का वास्तविक समाधान तो नहीं है मगर उसकी समस्या को कुछ तो कम ज़रूर कर सकता है.।
इसीलिए चीन ने उत्तर-दक्षिणी रोड और रेल परियोजनाओं में निवेश किया है ताकि म्यांमार में बंगाल की खाड़ी स्थित चॉकप्यू और पाकिस्तान के अरब सागर में ग्वादर में सालों भर उसे बंदरगाह उपलब्ध हों.।
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चीन का नया विस्तार, रूस भी आया उसके साथ ।
कैसे रोका जा सकता है चीन को? ।
तो चीन के विशाल बवंडर को अगर रोका नहीं जा सकता तो उसका प्रभाव कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?।
दरअसल सैन्य रोकथाम ही इसका समाधान है. भारत समेत अन्य तटीय तथा दूरस्थ देशों को एक साथ सुरक्षा गुट बनाकर मज़बूत रणनीति विकसित करनी होगी.।
भारत की सैन्य पहुंच ओमान के दुक़म, अफ्रीका स्थित जिबूती में फ्रांसिसी बेस 'हेरॉन', सेशेल्स, मालदीव और श्रीलंका के त्रिंकोमाली तक है. अब भारतीय नौसेना को सुमात्रा के बंदरगाह सबांग और मध्य वियतनाम स्थित ना थरांग में मज़बूत होने की आवश्यकता है.।
वियतनाम ने इस बंदरगाह के भारतीय नौसेना द्वारा इस्तेमाल के लिए मदद देने की पेशकश की है. इसके साथ संयुक्त रूप से इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस एकत्र करने का स्टेशन विकसित करने का प्रस्ताव भी रखा है ताकि हैनान द्वीप पर चीनी नौसेना के मुख्य ठिकाने सान्या पर नज़र रखी जा सके.।
सैनिक ठिकानों की इस श्रृंखला को मेज़बान, स्थानीय और क्षेत्रीय नौसेना के साथ मिलकर नियमित तथा कठिन अभ्यास के ज़रिये सशक्त करने की आवश्यकता है ताकि बीजिंग को स्पष्ट संदेश जाए कि वो तीनों जलडमरूमध्यों के दोनों ओर कितनी भी ताकत इकट्ठा क्यों ना कर ले, उसे परेशानियों का सामना करना ही पड़ेगा.।
भारत को ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल वियतनाम और इसकी चाहत रखनेवाले अन्य देशों को भी भारी संख्या में प्रदान करने को प्राथमिकता देनी होगी. निश्चित रूप से इससे चीन के दक्षिणी सागर बेड़े और हिन्द महासागर में गोपनीय "चौथे" बेड़े पर लगाम कस सकेगा.।
इससे उन देशों के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होगी जो दक्षिणी चीन सागर में चीन के एकाधिकार का विरोध कर रहे हैं और अभी तक ऐसे सामरिक गठबंधन का अभाव महसूस कर रहे थे.।
ये आपसी सहयोग पर आधारित नौसैनिक रणनीति है, जो भारत सरकार की "थियेटर स्विचिंग" रणनीति की तुलना में बेहतर है. भारत की थियेटर स्विचिंग रणनीति स्पष्ट रूप से अस्थिर है. मगर नई रणनीति अपनाने से 4,700 किलोमीटर लंबी ज़मीनी सीमा और तथाकथित वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन का वर्चस्व कम हो जाएगा.।
चीन अपनी ज़मीन का एक इंच भी नहीं छोड़ेगा'।
भारत- 'चीन का मुकाबला नहीं, असर कम करने पर ज़ोर'
भारत को बदलनी होगी रणनीति
दरअसल बीजिंग मानता है कि वह भारत की नौसेना और थल सेना पर एक साथ हावी हो सकता है. उसे लगता है कि वह ज़रूरत पड़ने पर ज़रूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करके सुदूर हवाई पट्टियों को स्थायी अड्डों में तब्दील कर सकता है और तिब्बत में अपनी वायुसेना और मिसाइलों की तैनाती बढ़ा सकता है ।
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