गुरुवार, 23 जनवरी 2020

कश्मीर में हिन्दू पण्डित कब लौटेंगे

कश्मीर के हिन्दू कब लौटेंगे कश्मीर 

देश ने पहला विभाजन 1947 मी देखा तब देश अविकसित था कमजोर था इसलिये मजबुरी जो हुआ उसे मन्जूर किया । 1990 में जो कश्मीरी पंडितों के साथ हूआ वहीं तो 1947 में हुआ था हिंदुओं को पाकिस्तान से भगाया गया और 1990 में हिंदुओं को कशमीर से भगाया गया जो हिंदुस्तान में था धारा 370 के साथ था । अब कश्मीर से धारा 370 हट गई तो कश्मीरी पंडित को कश्मीर कब मिलेगा कौन करेगा ये

 

30 साल से अपने घर लौटने की बाट जोह रहे हैं कश्मीर के पण्डित कोइ उनकी नही सुन राहा है

*_धोखे का दिन है 19 जनवरी. उन तमाम मजबूरियों और दर्द का दिन, जब आपके अपने लोग आपको अपने घरों से भाग जाने को मजबूर करते हैं. सरकार आपका साथ नहीं देती. फिर आपके दर्द को भुला भी दिया जाता है._*

ये सब हमारे देश में ही हुआ है. *हमारे भारत में कई जगहों पर अत्याचार हुए हैं लोगों पर. उन पर बात भी होती है. लेकिन कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को सेक्युलर रहने और देश में समरसता लाने के नाम पर बहा दिया गया है.*

ये सच है कि माइनॉरिटीज़ के साथ बहुत बार, बहुत खराब व्यवहार हुआ है, पर ये भी सच है कि कश्मीरी पंडितों के साथ भी उतना ही खराब व्यवहार हुआ है. ऐसा लगता है कि *हमारा सिस्टम खुद से ही डरता है.* हमें यकीन है कि *हम लोग अपने लोगों को बचा नहीं पाएंगे. इसलिए हम ये मानने से भी डरते हैं कि कश्मीरी पंडितों के साथ बुरा हुआ है. क्योंकि मन में डर होता है कि फिर बाकी जगहों पर लोग मुसलमानों को तंग करने लगेंगे. पर क्या ये तरीका सही है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम सबको न्याय दिला पाएं?*

न्याय के क्रम में ये कहां से आ जाएगा कि *जो ‘बहुसंख्यक’ है वो पीड़ित नहीं हो सकता और ‘अल्पसंख्यक’ गलत नहीं हो सकता?* फिर ऐसा तो नहीं है कि *इन दोनों वर्गों के लोग आपस में एक-दूसरे से बहुत जुड़े हुए हैं. अगर ऐसा होता तो ये अपना दुख आपस में बांट ही लेते. बात ही खत्म हो जाती. क्या हम ऐसा नहीं कर सकते कि लोगों को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के चश्मे से देखना छोड़कर उनके लोकल व अपने मुद्दों को देखना शुरू करें?*

*ताज्जुब* की बात ये है कि *आग अमेरिका और रूस के झगड़े से फैली*

*19 जनवरी 1990 को वो दिन माना जाता है जब कश्मीर के पंडितों को अपना घर छोड़ने का फरमान जारी* हुआ था. कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तो जंग 1947 से ही जारी है. पर कश्मीर में लोकल स्थिति इतनी खराब नहीं थी. *तमाम कहानियां हैं कश्मीरी मुसलमानों और कश्मीरी पंडितों के प्यार की. पर 1980 के बाद माहौल बदलने लगा था. रूस अफगानिस्तान पर चढ़ाई कर चुका था. अमेरिका उसे वहां से निकालने की फिराक में था. लिहाजा अफगानिस्तान के लोगों को मुजाहिदीन बनाया जाने लगा.*

ये लोग बगैर जान की परवाह किये *रूस के सैनिकों को मारना चाहते थे.* इसमें सबसे पहले वो लोग शामिल हुए जो अफगानिस्तान की जनता के लिए पहले से ही समस्या थे. *क्रूर, वहशी लोग. उठाईगीर और अपराधी.* इन सबकी *ट्रेनिंग पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में होने लगी.* तो आस-पास के लोगों से इनका कॉन्टैक्ट होना शुरू हुआ. इनसे जुड़े वो लोग जो पहले से ही कश्मीर के लिए समस्या बने हुए थे. क्रूर, वहशी लोग. *उठाईगीर और अपराधी. इन सबको प्रेरणा मिली पाकिस्तान के शासक जनरल ज़िया से. इतने ऊंचे पद पर रहकर वो यही काम कर रहे थे. क्रूरता उनका शासन था. वहशीपना न्याय. धर्म के उठाईगीर थे. अपराध जनता से कर रहे थे.*

जब ऐसे लोगों पर पुलिस ने कार्रवाई की तो उसकी जद में बाकी मुसलमान भी आ गए. कई जगहों पर बेकसूर लोग भी फंस गये. अब *धर्म के उठाईगीरों को मौका मिल गया.* वो कहने लगे कि *हम पहले से ही कहते न थे कि कश्मीरी काफिर हमारे दुश्मन हैं! इन्हें यहां रहने न दिया जाए.*

कश्मीर में *पंडित कभी भी 5% से ज्यादा नहीं थे. हालांकि कई जगहों पर क्लेम किया जाता है कि ये यहां पर 15-20% तक हुआ करते थे. पर ये जरूर था कि पुलिस और प्रशासन में कश्मीरी पंडित ठीक-ठाक संख्या में थे. जज, डॉक्टर, प्रोफेसर, सिविल सर्वेंट ऐसे पद होते हैं जो आसानी से नजर में आ जाते हैं. तो धर्मांध लोगों को आसानी से टारगेट मिल गया. उठाईगीर, चोर और अपराधी पहले से इन लोगों से लगे-बुझे थे. अब तो वजह मिल गई थी. सबको रेडिकलाइज किया जाने लगा.*

जिस जगह में *कश्मीरी पंडित सदियों से रह रहे थे, उनको घर छोड़ने के लिए कहा जाने लगा.* पहले तो *आस-पास के लोगों ने सपोर्ट किया* कि *नहीं, आपको कहीं नहीं जाना है.* पर बाद में कुछ तो डर और कुछ अपनी यूनिटी की भावना से कहा जाने लगा कि *बेहतर यही होगा कि आप लोग चले जाइए.* क्योंकि *बसों में ब्लास्ट होने लगे. यूं ही गोलियां चलने लगीं. ऐसा नहीं था कि सिर्फ पंडित ही मरते थे. मुसलमान भी मरते थे. पर धर्म की आग इतनी तेज थी कि उनके मरने की आवाज को आतंकवादियों ने दबा दिया. हर जगह यही धुन थी कि पंडितों को यहां से बाहर भेज देना है.*

फिर *सरकार के कामों ने कश्मीरियत से पंडितों को एकदम बाहर कर दिया*

सरकार ने इस आग में एक बहुत बड़ा पलीता लगाया. *1986 में गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गये.* खुद को सही ठहराने के लिए उन्होंने एक *खतरनाक निर्णय लिया.* ऐलान हुआ कि *जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाह मस्जिद बनवाई जाएगी.* तो *लोगों ने प्रदर्शन किया* कि *ये नहीं होगा.* जवाब में *कट्टरपंथियों ने नारा दे दिया* कि *इस्लाम खतरे में है.*

इसके बाद *कश्मीरी पंडितों पर धावा बोल दिया गया. साउथ कश्मीर और सोपोर में सबसे ज्यादा हमले हुए. जोर इस बात पर रहता था कि प्रॉपर्टी लूट ली जाए. हत्यायें और रेप तो बाई-प्रोडक्ट के रूप में की जाती थीं. नतीजन 12 मार्च 1986 को राज्यपाल जगमोहन ने शाह की सरकार को दंगे न रोक पाने की नाकामी के चलते बर्खास्त कर दिया.*

*1987 में चुनाव* हुए. *कट्टरपंथी हार गये. ये आखिरी मौका था, जब वहां के समाज को अच्छे से पढ़ा जा सकता था. वही मौका था, जब बहुत कुछ ठीक किया जा सकता था. क्योंकि चुनाव में कट्टरपंथ का हारना इस बात का सबूत है कि जनता अभी भी शांति चाहती थी.*

पर *कट्टरपंथियों ने चुनाव में धांधली का आरोप* लगाया. *हर बात को इसी से जोड़ दिया कि इस्लाम खतरे में है. जुलाई 1988 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट बना. कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए.*

*कश्मीरियत अब सिर्फ मुसलमानों की रह गई. पंडितों की कश्मीरियत को भुला दिया गया.

*14 सितंबर 1989* को भाजपा के नेता पंडित *टीका लाल टपलू को कई लोगों के सामने मार दिया गया. हत्यारे पकड़ में नहीं आए. ये कश्मीरी पंडितों को वहां से भगाने को लेकर पहली हत्या थी. इसके डेढ़ महीने बाद रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की हत्या की गई. गंजू ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी. गंजू की पत्नी को किडनैप कर लिया गया. वो कभी नहीं मिलीं. वकील प्रेमनाथ भट को मार दिया गया. 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या की गई. ये तो बड़े लोग थे. साधारण लोगों की हत्या की गिनती ही नहीं थी. इसी दौरान जुलाई से नवंबर 1989 के बीच 70 अपराधी जेल से रिहा किये गये थे. क्यों? इसका जवाब नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार ने कभी नहीं दिया.*

*नारे लगते थे-*

1- *_”जागो जागो, सुबह हुई, रूस ने बाजी हारी है”_*

*_”हिंद पर लर्जन तारे हैं, अब कश्मीर की बारी है”_*

2- *”हम क्या चाहते, आजादी”*

3- *_”आजादी का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लाह”_*

4- *”अगर कश्मीर में रहना होगा”*

*”अल्लाहु अकबर कहना होगा”*

5- *_”ऐ जालिमों, ऐ काफिरों, कश्मीर हमारा है”_*

6- *”यहां क्या चलेगा? निजाम-ए-मुस्तफा”*

7- *_”रालिव, गालिव या चालिव”_*

_अर्थात, “हमारे साथ मिल जाओ, या मरो और भाग जाओ”_

*लाखों लोगों के भागने की कहानियां बनीं, रुकने की भी बनीं, पर सच बहुत कड़वा था*

*4 जनवरी 1990* को *उर्दू अखबार आफताब* में *हिज्बुल मुजाहिदीन* ने छपवाया कि *सारे पंडित कश्मीर की घाटी छोड़ दें.* अखबार *अल-सफा* ने इसी चीज को दोबारा छापा. *चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर* कहा जाने लगा कि *”पंडित यहां से चले जाएं, नहीं तो बुरा होगा.”*

इसके बाद लोग *लगातार हत्यायें औऱ रेप* करने लगे. कहते कि *”पंडितो, यहां से भाग जाओ, पर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाओ – असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान (हमें पाकिस्तान चाहिए. पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ)”*

*गिरजा टिक्कू का गैंगरेप हुआ. फिर मार दिया गया.* ऐसी ही अनेक घटनाएं हुईं. पर उनका रिकॉर्ड नहीं रहा. किस्सों में रह गईं. एक *आतंकवादी बिट्टा कराटे ने अकेले 20 लोगों को मारा था. इस बात को वो बड़े घमंड से सुनाया करता. जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट इन सारी घटनाओं में सबसे आगे था.*

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक *60 हजार परिवार कश्मीर छोड़कर भाग गये.* उन्हें आस-पास के राज्यों में जगह मिली. जान बचाने की. कहीं कोई इंतजाम नहीं था. *19 जनवरी 1990 को सबसे ज्यादा लोगों ने कश्मीर छोड़ा था. लगभग 4 लाख लोग विस्थापित* हुए थे. हालांकि आंकड़ों के मुताबिक *अभी लगभग 20 हजार पंडित कश्मीर में रहते हैं.*

विस्थापित परिवारों के लिए तमाम राज्य सरकारें और केंद्र सरकार तरह-तरह के पैकेज निकालती रहती हैं. कभी घर देने की बात करते हैं. कभी पैसा. पर *इन 27 सालों में मात्र एक परिवार वापस लौटा है.* क्योंकि 1990 के बाद भी कुछ लोगों ने वहां रुकने का फैसला किया था. पर *1997, 1998 और 2003 में फिर नरसंहार* हुए थे. हालांकि *कश्मीर के मुसलमानों और रुके हुए पंडितों के बीच प्यार की कई कहानियां सामने आती हैं.* पर सच यही है कि *जिस प्रॉपर्टी पर लोगों ने कब्जा कर लिया है, उसके प्यार को इस प्यार से बदला नहीं जा सकता. लौटने की कोई गुंजाइश नहीं है.*

हालांकि नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2015 में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए 2 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी. पर इतने लोगों का इससे क्या ही होगा. कितने फ्लैट मिलेंगे और कितनी नौकरियां बटेंगी. *सबसे बड़ी बात कि अपराधियों के बारे में कोई बात नहीं होती है. सब चैन की नींद काट रहे हैं. किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.*

ये सारी बातें किसी धर्म के दूसरे धर्म के प्रति नफरत को नहीं दिखाती हैं. ये बातें है *किसी भी मैजॉरिटी की, जो कि कंट्रोल खो देने पर माइनॉरिटी के लिए कहर बन जाती हैं.* देश के बाकी हिस्सों में कई जगहों पर हिंदू बहुसंख्यक थे. वहां पर मुसलमानों और सिखों को झेलना पड़ा. कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक थे, तो हिंदुओं को झेलना पड़ा. सरकार हर जगह की घटना में असहाय बनी रही. हमेशा यही लगता है कि सरकारी सिस्टम लोगों को बचा पाने में नाकाम है.

अगर ध्यान से देखें तो *_इन मामलों को तुरंत ठीक किया जा सकता है. अगर सरकार सही और सुलझे दिमाग के साथ एक्टिव हो जाए, तो उग्रवाद की समस्या को दूर किया जा सकता है. पर तमाम दावों के बीच देश में एक ही माहौल है. अगर कश्मीरी पंडितों के हक की आवाज उठाई जाए तो उन हजारों मुसलमानों की आवाज दबने लगेगी जो इन तीस-चालीस सालों में मारे गये हैं. हमेशा एक की कीमत पर ही दूसरा आगे बढ़ने को तैयार है. दोनों एक साथ नहीं रह पा रहे. या शायद हम रहने नहीं दे रहे. क्योंकि जब हम फंसते हैं तो यही मानते हैं कि हम तो ठीक हैं, दूसरे लोग हमें ठीक से रहने नहीं दे रहे._*

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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

जनसंख्या के मुद्दे परओवैसी आपतकाल में हुई नस बन्दी पर भी तो कुछ कहे


[ ] *" ओवैसी जी भड़काऊ बयान बाजी क्यो करते है "*

*" भड़काऊ भाईजान  हैदराबादी जी कभी आपातकाल में हुई नसबन्दी पर कोई भाषण क्यो नही देते  "*

 जनसंख्या पर नियंत्रण 

जरूरी है,,,अगर एक रोटी 

हो खाने वाले ,,,,, *" दस तो 
किसका भी पेट नही भरेगा 
बरसो पहले कांग्रेस पार्टी ने 
एक  नारा दिया था,,,,,हम 

दो हमारे दो ,,,,,,पर इस नारे 
का प्रचार प्रसार  सिर्फ एक 
ही समुदाय में किया 

था।हैदराबाद के एक 

भड़काऊ ,,,भाई जान,,,है  

कल इंडिया टीवी पे 

भड़काऊ भाई जान का 

भाषण चल राहा था  

भड़काऊ भाई जान बड़े 

शायरना अंदाज में भाषण 

दे रहे थे भाषण जनसंख्या 

पर ही था भड़काऊ भाई 

जान शायरी कह रहे थे हम 

दो ,,,,,पर हमारे दस क्यो 


नही ,,,,हम भड़काऊ भाई 

जान को अतीत में ले के 

चलते है जब आपातकाल 

लगा था तो संजय गांधी जी 
ने नसबन्दी कानून लाया था 
। "*Vinod Meghwani: सूचना: एक खबर ने ये लेख ओर फोटो गूगल से डाउनलोड किया है,,विनोद मेघवानी

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा 

गांधी के बेटे संजय गांधी के 
नाम का लोगों में डर बैठ 

गया था. क्यों? वो इसलिए 

कि जबरन नसबंदी करवाने 
के उनके आदेश की वजह 

से गांव के गांव घेरे जा रहे 

थे. लाखों पुरुष मजबूर कर 
दिए गए नसबंदी के लिए. 

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा 

के जिन कदमों की 

आलोचना हुई, उनमें ये 

कदम भी शामिल था. 

लेकिन इसका असर काफी 
लम्बे समय तक रहने वाला 

था. ये माना जाता है कि 

कांग्रेस पार्टी के उस समय 

अधोपतन में इस कदम ने 

महती भूमिका निभाई थी.

मास स्टरलाइजेशन यानी 

बड़ी संख्या में नसबंदी 

कराने की खबरें भले ही 

इमरजेंसी के दौरान आई 

हों. लेकिन जनसंख्या को 

काबू करने के लिए केरल में 

उससे काफी पहले से ही 

नसबंदी के कैम्प शुरू कर 

दिए गए थे. और वहां बेहद सफल भी हुए थे.

अगस्त 1970. कोचीन में 

डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट 

सेमिनार किया गया. इसमें 

एर्नाकुलम जिले को बेहतर 

बनाने, और उसके भविष्य 

के लिए तैयारियां करने को 

एजेंडा रखा गया. इसमें 

जनसंख्या

बंद कमरे में बनाए जाने वाले वीडियो से अंधी कमाई

Vinod raja meghwani (sampadak),,,, बन्द कमरे में बनाए जाने वाले वीडियो से  अंधी कमाई कितनी हे,,,?????